# किसके लिए
न जाने क्यों ,
मन नही लग रहा है ,
लगता है आज फिर ,
कोई अंदर जग रहा है ,
बोलता नही मगर ,
जाने क्या चल रहा है ,
ये कैसी है अकुलाहट ,
जो वो मचल रहा है ,
रात का अँधेरा ,
क्यों नही कट रहा है ,
भोर का उजाला ,
क्यों पीछे हट रहा है ,
आलोक क्यों नही है ,
ये कौन भटक रहा है ,
वो कौन जो गया है ,
कल तक निकट रहा है ,
आकर भी न जान पाए ,
किससे जीवन लिपट रहा है ,
साँसों को बेच तू भी ,
मौत को ही झपट रहा है ,
पाया भी क्या है खोकर ,
हर झूठ बदल रहा है ,
जलती चिता में देखो ,
तू मिटटी सा निकल रहा है ,
जिन्दगी को जो कभी भी ,
ना अपनी समझ रहा है ,
नाम रहा है उसकी का ,
जो किसी के लिए मर रहा है ...........................
अगर हम जानवर से ऊपर उठाना चाहते है तो आदमी को किसी के लिए जीना आना चाहिए ....................वरना हम को मनुष्य कौन और किसके लिए कहा जायेगा .............. डॉ आलोक चान्टिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन
न जाने क्यों ,
मन नही लग रहा है ,
लगता है आज फिर ,
कोई अंदर जग रहा है ,
बोलता नही मगर ,
जाने क्या चल रहा है ,
ये कैसी है अकुलाहट ,
जो वो मचल रहा है ,
रात का अँधेरा ,
क्यों नही कट रहा है ,
भोर का उजाला ,
क्यों पीछे हट रहा है ,
आलोक क्यों नही है ,
ये कौन भटक रहा है ,
वो कौन जो गया है ,
कल तक निकट रहा है ,
आकर भी न जान पाए ,
किससे जीवन लिपट रहा है ,
साँसों को बेच तू भी ,
मौत को ही झपट रहा है ,
पाया भी क्या है खोकर ,
हर झूठ बदल रहा है ,
जलती चिता में देखो ,
तू मिटटी सा निकल रहा है ,
जिन्दगी को जो कभी भी ,
ना अपनी समझ रहा है ,
नाम रहा है उसकी का ,
जो किसी के लिए मर रहा है ...........................
अगर हम जानवर से ऊपर उठाना चाहते है तो आदमी को किसी के लिए जीना आना चाहिए ....................वरना हम को मनुष्य कौन और किसके लिए कहा जायेगा .............. डॉ आलोक चान्टिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन
No comments:
Post a Comment