आज फिर क्यों आँखे नम है ,
भीड़ में कोई चेहरा कम है ,
कितना भीगा आलोक से जीवन ,
फिर भी अंतस में क्यों तम है ,
रोज नींद कहकर क्यों सुलाती ,
मौत बता तुझको क्या गम है ,
कल तक दो जीवन जो साथ रहे ,
ठहाको में उनके भी सम है ,
कहा छीन कर ले गई आज तू ,
जब दो शरीर में एक ही हम है ,
इतना सन्नाटा उसको क्यों पाकर ,
लाश को पा मौत अब गई थम है|
भीड़ में कोई चेहरा कम है ,
कितना भीगा आलोक से जीवन ,
फिर भी अंतस में क्यों तम है ,
रोज नींद कहकर क्यों सुलाती ,
मौत बता तुझको क्या गम है ,
कल तक दो जीवन जो साथ रहे ,
ठहाको में उनके भी सम है ,
कहा छीन कर ले गई आज तू ,
जब दो शरीर में एक ही हम है ,
इतना सन्नाटा उसको क्यों पाकर ,
लाश को पा मौत अब गई थम है|
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