Monday, October 14, 2019

चींटी की तरह कुचले जा रहे हो

चींटी की तरह कुचले जा रहे हो ,
मेरी लाश से होकर कहा जा रहे हो ,
मैं भी तो निकली थी एक सपना लिए ,
मेरी हकीकत को भी मिटा जा रहे हो ,
सिर्फ मुझको मसलने के लिए ही क्यों ,
मेरे अस्तित्व तक को नकारे जा रहे हो ,
क्यों नही है दूर तक जाने का मेरा सच ,
बस अपने को अपनों में पुकारे जा रहे हो ,
मालूम है मेरे भी अपने रोते है न आने पर ,
मेरी शाम को क्यों आंसू दिए जा रहे हो ,
कहा ढूंढे मेरे होने के निशान इस दुनिया में ,
तुम हत्यारे होकर भी मुस्काए जा रहे हो ,
मेरी नियत यही तो न थी कि कोई मुझे मारे,
अपनी ख़ुशी में मेरी ख़ुशी क्यों जला रहे हो ,
मैं भी हसने के लिए तुझे से होकर ही गुजरी ,
अपने दामन से क्यों मुझे रगड़े जा रहे हो ,
कब तक चींटी कह कर मुझे मिटाते रहोगे ,
औरत को आज ये क्या दिखाते जा रहे हो ,
मेरी ही तरह तो है तेरी माँ भी घर में देखो ,
फिर मुझे मादा कह क्यों जलाते जा रहे हो ,.................................
.आइये हम समझे इनका दर्द और कुछ बदल कर दिखाए इनका भी कल और आज ...........................आखिर ये है तभी तो है मेरा आपका वजूद . आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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