Tuesday, October 29, 2019

मुझे कली कब तक समझोगे

आज कली बहुत थी रोई ,
अपने में थी बस खोई खोई ,
नही चाहती थी वो खिलना ,
दुनिया से कल फिर मिलना ,
कोई हाथ बढ़ा तोड़ लेगा ,
डाली का भ्रम सब तोड़ लेगा ,
वो बेबस रोएगी जाने कितना ,
पर दर्द कौन समझेगा इतना ,
जिस डाली पर भरोसा किया ,
वही ने आज भरोसा लिया ,
खुद खामोश रही बढे हाथो पर ,
बिस्तर पर सजने दिया रातो पर ,
मसल कर छोड़ दिया नरम समझ ,
फूल तक न बनने दिया नासमझ ,
कली के जीवन में अलि नही है ,
ऐसे पराग को पीना सही नही है,
ये कैसी पहचान मिली उसको आज ,
गुलाब की कली छिपाए क्या है राज,
अपनी ख़ुशी से बेहतर कब कौन माने,
जीने की आरजू उसमे भी कब जाने ,
जीवन का ये कैसा खेल चल रहा ,
हर डाल का फूल क्यों विकल रहा ,
क्यों नही पा रहे फूल का पूरा जीवन ,
क्यों नही कली का कोई संजीवन .....................


आइये हम सब समझे कि जिस तरह लड़की को हम सिर्फ जैविक समझ कर जी रहे हैं ................क्या उनको भी कली की तरह पूरा जीने का हक़ नही है ...

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