Friday, October 11, 2019

जब मेरी जिंदगी थमी ,

जब मेरी जिंदगी थमी ,
सोचा छोड़ दू अब जमीं ,
न पूछो कितनी भीड़ जमी ,
शायद आज संस्कृति की ,
यही कहानी शेष बची थी,
क्या इसी खातिर भगवन ,
ने मानव और मानव ने ,
संस्कृति की बिसात रची थी ............

क्या आप औरत का मतलब जानते है ???
मैंने जब एक दिन पूछा तो उत्तर आया ये लो भला हम क्यों नहीं जानेंगे औरत को ?? क्या हमने अपने को कभी देखा नहीं है और भैया हमाम में तो सभी नंगे है | मैं उनकी बातें सुन कर  दंग था मैंने फिर कहा क्या औरत का मतलब सिर्फ शरीर तक ही है तो कहने लगे क्या यार फर्जी बात करते हो क्या तुमको लगता है की औरत कोई योग तपस्या करके आगे बढ़ती है वो तो ?? और उन्होंने एक साथ कई नाम गिना डाले कि कौन कैसे बढ़ा ? मैं आश्चर्य चकित था मैं आज के विक्रमादित्य ( अब इनका असली नाम और काम न पूछ लीजियेगा वरना मेरी तो ) से कहा हुजूर न्याय कीजिये सभा में वो सभी बैठे थे जिन्होंने एक भोले से किसान को अंगुलिमाल डाकू बनाने में पूरी ताकत लगा  दी थी पर विक्रमादित्य तो आज कलयुग में थे उन्होंने कहा कि किसी महिला ने तो शिकायत की नहीं है फिर मैं कैसे न्याय कर सकता हूँ ? मैं अवाक् था मैंने कहा इसके मतलब आपके राज्य में दो पुरुष किसी भी सभ्य महिला को कुछ भी कह सकते है पर आप तब तक कुछ नहीं करेंगे जब तक महिला ना कहे !! अब तो जान गए होंगे कि विकर्मादित्य का चिंतन महिला के लिए क्या है ? मैं क्षुब्ध हो गया मैंने महिला से जाकर कहा कि कब तक शोषण का शिकार होती रहोगी अपने अधिकार के लिए लड़ो दुनिया को बताओ कि तुम्हरे साथ क्या किया गया मेरी सारी  बात सुन कर बोली क्या फायदा सच कह कर मुझे बचपन से मरने तक मार ही खाना है तो आज ही उसका प्रतिकार क्यों करूँ आप जो चाहते है करिये मैं आप का साथ नहीं दे सकती !!!! अब बा री मेरी थी आप लोग मेरी हसी  उड़ा सकते है , मुझ पर थूक भी सकते है | खाली समय में मेरे ऊपर चुटकुले बना सकते है | अपने समय को मुझे गप्प का हिस्सा बना कर मनोरंजन कर सकते है क्योकि सब यही पूछ रहे है क्या मैं औरत को जानता हूँ ???( एक सच जो मेरी जीवन का सबसे बड़ा व्यंग्य बन गया )

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