Monday, January 30, 2023

कांटा का जीवन

 क्यों महक रही हो इस कदर

 मेरी जिन्दगी में तुम ,

चमेली कह दूंगा तो 

गुनाह होगा मेरे लिए  ,

तुम बन कर क्यों रही पाई

 उस जंगली फूल सी कहीं ,

जी भी लेती जी भर कर 

जानवर के साथ ही सही ,

अब देखो जिसे वो ही 

तुम्हारे महक का प्यासा है ,

क्या अभी भी डाली से 

जुड़े रह जाने की आशा है ,

आज तक न जान पाई 

आदमी की फितरत आलोक ,

उसे हर महक , सुन्दरता को 

देख होती हताशा है ,

मुझे दर्द है कि तेरी मौत पर

 कभी कोई न रोयेगा  ,

तेरी हर बर्बादी में बस संग

 एक कांटा भी खोएगा  । 

जो चुभेगा हर पल हर पग पर

 तुम्हें तुम्हारे अंतस में यही प्रश्न बोएगा

 क्यों नहीं तुमने मेरा 

मूल्य समझा जीवन में 

मैं तो बूटी सा था 

तुझे जिंदा रखने के संजीवन में

आलोक चांटिया

Thursday, January 26, 2023

अखिल भारतीय अधिकार संगठन ने बनाया गणतंत्र दिवस और बसंत पंचमी

अखिल भारतीय अधिकार संगठन की सोच हमेशा से आ रही है कि जहां पर भी रहे अच्छा प्रयास करें और देश को मजबूत बनाएं आज कुछ इसी भावना के साथ मनाया गया गणतंत्र दिवस और बसंत पंचमी











 

Wednesday, January 25, 2023

आओ मिलकर करें जतन फूलों सा प्यारा हो वतन

 अखिल भारतीय अधिकार संगठन अपने गीत से आपको गणतंत्र दिवस की शुभ कामना प्रेषित करता है ..............

आओ मिल कर करें जतन,

फूलो सा प्यारा हो वतन ,

हम बढे ,बढ़ कर के छू ले ,

प्रगति के नित नए कदम ,

बून्द बून्द से घट है भरता,

कर्म के पथ पर जीवन तरता ,

शस्य स्यामला धरती हो मेरी ,

आओ मिल सब करें चमन ........

आओ मिल कर करें जतन ,

फूलो सा प्यारा हो वतन .................

अपने देश का मान करें .......शुभ कामना

Tuesday, January 24, 2023

मताधिकार.............. प्रजातंत्र का ब्रह्मास्त्र

 

मताधिकार ......मताधिकार
प्रजातंत्र का देखो ये ,
अद्भुत सा हथियार
देश को हम बदल देंगे ,
विकास पे हम फिर चल देंगे ,
डाल के मत को  बदल डालो
राजनीती इस बार
मताधिकार मताधिकार .....
आप भी आकर मत डालो
हम भी आकर मत डाले
आस पड़ोस से कह दो निकलो,
छोड़ के घर बार ,
मताधिकार ...मताधिकार .....
बूंद बूंद से घट है भरता ,
हर एक मत से समाज है बनता ,
राम राज्य का मत  से कर दो
सपना फिर साकार ...
मताधिकार ..मताधिकार ....
यथा राजा तथा प्रजा ,
यथा भूमि  तथा तोयम
आपका  मत बना देगा 
जनता की सरकार
मताधिकार मताधिकार

आलोक चांटिया

रंग और औरत

 

#काव्यमंचमेघदूत

उसका रंग

भला कौन मिट्टी के रंग को
देखकर अपना घर बसाता है
कौन उसके करीब आता है
हर कोई बिना मिट्टी का रंग जाने
उस पर घर बना लिया करते हैं
अपने सुकून के पल आलोक
ढूंढ लिया करते हैं
मिट्टी के रंग देखकर लोग
यह भी समझ लेते हैं
कौन सा बीज किस मिट्टी के
रंग के साथ अपने अंदर के
गुणों को निकालकर बाहर ला पाएगा
और होता भी ऐसा ही कुछ है
रोज हर पल पूरी दुनिया में
मिट्टी अपने रंग के साथ
न जाने कितने बीज को जीवन देती है
बदले में वह क्या किसी से लेती है
फिर भी तुम रंग देखकर
अपने जीवन में किसी को लाते हो
कभी-कभी उसे बदसूरत काला
सावला कहकर उससे और उसके
जीवन से दूर चले जाते हो
क्या मिट्टी के रंग से कभी
अपने जीवन में कुछ सीख पाते हो

आलोक चांटिया

Monday, January 23, 2023

बालिका दिवस मानवाधिकार के दायरे में

 बालिका दिवस मानवाधिकार के दायरे 

संस्कृति एक ऐसा शब्द है जिसको भारत के संदर्भ में इतना ज्यादा गंभीरता से लिया जाता है कि मानव के रूप में पैदा होने वाली बालिका भी देवी का दर्जा पाती है यहां पर यह समझना जरूरी है कि उन्हें बालिकाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है जिनका मासिक स्राव नहीं आरंभ हुआ होता है या ऐसे भी कहा जा सकता है कि 9 साल से पहले जो बेटियां हैं उनको देवी कहा जाता है यही कारण है कि नवरात्र में इतनी ही उम्र की बेटियों की पूजा देवी के रूप में की जाती है आज बालिका दिवस देश मना रहा है और ऐसे में इस बात पर मनन करना आवश्यक है कि देश में हर वर्ष एक करोड़ छप्पन लाख गर्भपात होते हैं और प्रत्येक 9 पैदा होने वाली लड़कियों में से एक लड़की मार दी जाती है क्या सुखद कहा जा सकता है कि अभी लड़कियों को मारने में कमी आई है लेकिन जिस तरीके से आज लड़कियां ज्यादा असुरक्षित माहौल में जीने लगी है उसमें कोई व्यक्ति कहे या ना कहे उसने दो बातें स्वीकार कर लिया है एक तो आज भी वह जान निकाल कर घर देता है कि उसकी बेटियां वहां ना जाए जहां उसे खुद सुरक्षित महसूस नहीं हो रहा है और दूसरा अब उन्होंने भी या मान लिया है कि लड़कियां सब कुछ जानती हैं और अपने विषय में सोच समझ सकती हैं इसलिए वह अपने को सुरक्षित रखते हुए जीवन जीने के साथ आगे बढ़ सकती हैं और यहां पर आकर सुचिता जैसे शब्द को अब भारतीय संस्कृति से थोड़ा सा हटाकर देखा जाने लगा है शायद इसकी आवश्यकता भी है क्योंकि जब पुरुष के लिए सुचिता जैसे शब्दों का महत्व नहीं है तो महिलाओं के लिए भी नहीं होना चाहिए एक ही तरह के मानव होने के बाद संविधान के अनुच्छेद 14 में उनको समानता के बोध में मौलिक अधिकारों से वंचित रखा जाए यह उचित नहीं है लेकिन भारतीय संस्कृति सहित वैश्विक संस्कृति में महिला को सिर्फ शरीर के आधार पर ही देखा जाता है पुरुष समाज या कभी स्वीकार नहीं करता की किसी भी रिश्ते में खड़े होकर वह किसी महिला को उन लोगों के साथ देखें जिन्हें वह पसंद नहीं करता और यह बात पिता के लिए भी सत्य सिद्ध हो सकती है भाई के लिए भी सत्य सिद्ध हो सकती है प्रेमी के लिए भी सत्य सिद्ध हो सकती है और पति के लिए भी सत्य सिद्ध हो सकती है और यहीं आकर बालिका के जीवन में समानता का वह कड़वा विष दिखाई देता है जहां पर उसे दिन-रात या साबित करना पड़ता है कि वह सही है वह गलत नहीं है उसे न जाने पुरुषों की कितने संशय और अविश्वास से होकर गुजरना पड़ता है पर जीने की जिस संघर्ष की स्थिति को बालिकाओं ने चुना है उसमें उन्हें यह सब स्वीकार करना पड़ता है वह बात अलग है कि कोई भी पुरुष यदि चरित्रवान होकर स्वयं जीने लगे और वह यह सोचने लगे कि जब वह अपने शरीर की शुचिता को कोई महत्व नहीं देता है तो फिर वह किसी भी महिला के स्वरूप के लिए ऐसा कैसे सोच सकता है जिस दिन व्यक्ति में इस विमर्श के प्रति जागृति आ जाएगी लड़की के जीवन से सन से संदेश उसके कारण होने वाले कल आहा हत्या मारपीट उत्पीड़न आदि की समस्याएं स्वयं ही समाप्त हो जाएंगी विरासत में जो भी बातें कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सीख लेता है उसे मिटा पाना आसान नहीं होता है और यही कारण है कि आज भी ज्यादातर व्यक्ति को यहां अच्छा लगता है कि उसके घर में लड़के पैदा हो लेकिन यह बात तब तक सही थी जब पारंपरिक जीवन था खेती होती थी पैदा होने वाले बच्चे के द्वारा पिता की संपत्ति का संरक्षण होता था अब ऐसा कुछ भी नहीं रहा है प्रगति की परिभाषा में कोई भी अपने मूल स्थान पर रोककर नहीं रहना चाहता है ऐसे में किसी को इस बात की ना रुचि होती है ना ही कोई पूछता है कि कौन किसका पिता है कौन किसका बाबा है किसके पास क्या विरासत है व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत जीवन और प्रगति को ही सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है और ऐसी स्थिति में किसी भी परिवार में अब इस बात को लेकर विवाद नहीं होना चाहिए कि उनके घर में लड़के हैं या लड़की हैं आंकड़े यह कहते हैं कि जीवन की हर विधा में लड़कियों ने यह साबित किया है कि वह पुरुषों से बहुत आगे खड़ी है और वैसे भी एक मां बच्चे को जन्म देकर प्रसव पीड़ा को सहन करके अपना अमृत पान करा कर यह प्राकृतिक रूप से भी साबित करती है कि वह पुरुष से ज्यादा शक्तिशाली है वह सृजन करने में माहिर है यह बात अलग है कि आज तक परंपरागत समाज या नहीं समझ पाया है कि जब धान का बीज बोने परधान ही पैदा हो सकता है गेहूं का बीज बोने पर गेहूं ही पैदा हो सकता है तो भला इसके लिए मिट्टी को कैसे दूर किया जा सकता है इसके लिए औरत को कैसे दूर किया जा सकता है कि उसके गर्भ से लड़के ने जन्म लिया या लड़की ने इतने छोटे से दर्शन को न समझ पाने के कारण हर लड़की को इस दंश को जी कर रहना पड़ता है कि उसने क्यों लड़की को जन्म दिया यह भी बड़ी हास्यास्पद बात है कि जिस लड़की को देखकर सभी दुखी होते हैं उसी लड़की को पाने के लिए पूरा समाज पागल रहता है और यह स्थिति सिर्फ भारत जैसे देश में नहीं है यूरोपियन देशों में भी अट्ठारह सौ पचासी तक महिलाएं साइकिल नहीं चला सकती थी क्योंकि उससे उनकी टांगें दिखाई देने लगती थी यही नहीं 12 वीं शताब्दी से लेकर सोनम ही शताब्दी के बीच में जब तक यह बात स्पष्ट नहीं हो गई कि शुक्राणु के कारण बच्चे पैदा होते हैं तब तक लड़की के पेट से पैदा होने वाले लड़कों के कारण लड़कियों को डायन तक कहा जाता था और यह पूरी तरह से यूरोपीय व्यवस्था थी जिससे यह स्पष्ट है कि अज्ञानता ने महिला को सिर्फ एक पशु वध जीवन जीने के लिए मजबूर किया और उसे मानव या पुरुष के समकक्ष लाने में बहुत बड़ी लड़ाई उसे लड़नी पड़ी है यदि निष्पक्ष होकर कोई भी व्यक्ति अपने दिल में यह महसूस करें कि वह लड़की के लिए क्या सोचता है और उसका विमर्श हुआ स्वयं करें तो समाज स्वयं ही स्वच्छ दिखाई देने लगेगा इस बात को हम सभी बड़े खुशी से स्वीकार करते हैं कि घर में प्रबंधन में महिला का कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता है लेकिन समाज में हम उसके इसी प्रबंधन कौशल को स्वीकार करने में हिचकते हैं और इस तरह दूरी मानसिकता के कारण महिला को समाज में बाहर निकलने पर परेशानी का अनुभव होता है जब वह घर के प्रबंधन में रसोई में बच्चों को पालने में पति के नियमित जीवन को सुचारू रूप से चलाने में पारंगत है तो महिला निश्चित रूप से समाज को भी चला सकती है एक बहन जिसे इस बात का ख्याल रहता है कि उसके भाई ने खाना खाया है या नहीं एक बेटी जो अपने पिता के खाने कपड़े का ख्याल रखती है इतना ख्याल एक बेटा या पुत्र अपने बहन और पिता का नहीं रखता है लेकिन हम इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं ऐसे में इतनी संवेदनशील बालिका जब समाज में जिम्मेदारियों को संभाल लेगी तो निश्चित रूप से वह समाज के उन पहलुओं में भी अपने सर्वोच्च का कोई स्थापित करेगी जो उसके अंदर प्राकृतिक रूप से हैं लेकिन समाज खासतौर से पुरुष शासित समाज द्वारा इस तथ्य को स्वीकार न करने के कारण महिला को समाज में ज्यादातर समय अपने को साबित करने अपने को सुरक्षित रखने में ही निकल जाता है और वह एक डर के जीवन के कारण अपनी योग्यता का प्रदर्शन नहीं कर पाती है अंतरिक्ष से लेकर जेट फाइटर तक प्रशासनिक सेवा से लेकर घर की रसोई तक कहीं पर भी पुरुष का सामना करने सेवा हिचकी नहीं है तो फिर आने वाली पीढ़ी को इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि उसे भी बालिकाओं को अवसर देना चाहिए यदि वह घर के दरवाजे से बाहर निकली एक बालिका के साथ सही व्यवहार नहीं करेंगे तो स्वयं उनकी बहन के साथ भी कोई पुरुष अच्छा व्यवहार नहीं कर रहा होगा और निश्चित रूप से कोई व्यक्ति ऐसा समाज नहीं चाहता है कि उसकी मां और बहन के लिए कोई भी व्यक्ति विपरीत परिस्थिति पैदा करें लेकिन यह तभी संभव है जब हम स्वयं में एक अच्छी स्थिति में महिला को बालिका को रहने में सहयोग करें और इसी मनोविज्ञान को जिस दिन समाज में देश में समझा जाने लगेगा बालिका दिवस अपने महत्तम स्थिति को प्राप्त कर लेगा और बालिका अपने मानवाधिकार के साथ अपने शोषण के विरुद्ध गरिमा को जीवन की ओर अग्रसर हो जाएगी डॉ आलोक चांटिया लेखक विगत दो दशकों से मानवाधिकार विषयों पर लेखन कार्य कर रहे हैं और जागरूकता के लिए अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ जुड़े हुए हैं

औरत

 औरत 


भला मिट्टी कब देखती है 

कौन सा पौधा छोटा है 

कौन बड़ा है कौन टेढ़ा है 

कौन मेरा है कौन लंबा है 

कौन नाटा है किस में कांटे हैं 

किस में फूल है किस में फल है 

किसमें पत्ती हैं कौन खरपतवार है

 कौन घास है कौन फूस है 

कौन नागफनी है 

मिट्टी तो सिर्फ सब को अपना 

समझ कर अपने गले लगाती है 

सबके हिस्से में उसके अंदर की

सारी खूबियां बाहर करने का 

अवसर ही लाती है 

किसी से कब कहती है 

उसे कैसे पौधे की चाहत रही है 

क्या उसने आज तक किसी से 

अपने मन की थाह कही है

आलोक चांटिया

Saturday, January 21, 2023

अंधेरे से दूर क्यों भागते हो

 अंधेरे को अपने में घोलकर

 पूरब से निकलता सूरज हो 

या फिर अंधेरे में खुद घुलकर

पश्चिम की तरफ डूबता हुआ सूरज हो

 अंधेरे और रोशनी के 

इसी संयोजन के समय ही तो 

दुनिया को सब कुछ 

लुभावना सा लगता है 

विज्ञान भी कहता है 

विटामिन डी तभी 

सबसे सुंदर बनता है 

मजबूत होती है धरा 

मजबूत होता है शरीर 

जब अंधेरे और रोशनी का

 ऐसा मिलन होता है 

क्या अंधेरे और रोशनी के 

इस मिलन को तुम कभी 

इस धरा पर महसूस कर पाए हो 

सोच कर देखो क्या तुम 

अंधेरे से दूर और सिर्फ 

रोशनी में रहने के लिए आए हो

 आलोक चांटिया

भारत जोड़ो यात्रा क्यों

 


ठण्ड से हारती धूप देख लीजिये ,
हर जुल्मो सितम पर रहम कीजिये ,
आज भी सोया पुल पर एक आदमी,
उसको भी अपना आलोक कह लीजिये  ,
माना कि नेता आप बन गए हमारे ,
फिर भी आदमी होने का वहम कीजिये,
मत देकर कोई हमने गुनाह न किया ,
हमे लूटने पर थोडा तो शर्म कीजिये ,
वक्त बदलते ना लगती देर मालूम है ,
हर लम्हे से अब थोडा डरा कीजिये ,
वो देखिये फिर चला देश का आदमी ,
उसको दिल्ली का तख़्त अब दे दीजिये ,
हारे खड़े खुद अपनी करनी के कारण,
पांच सालो की मस्ती याद कर लीजिये ,
कितना रोया था मै तेरे दरवाजे पर आकर,
उन अश्को से तौबा अब तो कर लीजिये ,
आलोक चांटिया

Friday, January 20, 2023

औरत भी मानव है

 आज हूँ कल ,

नही रहूंगा  ,

आज सुन लो ,

कल नही कहूँगा 

क्यों मशरूफ हो ,

खुद में इतना ,

आज देख लो ,

कल नही दिखूँगा ,

मैं जानता हूँ ,

कहानी सुनते हो,

सीता की बात ,

फिर नही कहूँगा ,

आज मेरे चीर की ,

पीर सुन भी लो ,

द्रोपदी की एक बात ,

फिर न सहूँगा , 

क्यों इतना अंतर है 

कथनी करनी में 

कहते क्यों नहीं तुम्हें 

अहिल्या ही कहूंगा

 एहसास क्यों कराते हो 

मां बहन कह कर 

जिंदा पैरों पर खड़े गोश्त के 

जब टुकड़े-टुकड़े ही करूंगा 

आलोक चांटिया

Thursday, January 19, 2023

जन्मदिन की शुभकामना

 मेरी जिंदगी में तुम इस तरह आई हो


 क्या बताऊं आज तक क्या पाई हो


 बस यही जानकर खुश रहने लगा हूं


 कि तुम इस भाई की बहन बनपाई

 हो 


ना जाने भगवान कहां तक ले जाएगा


 जिंदगी क्या कभी यह सोच पाई हो


 आज जन्मदिन ने उसके दस्तक दी है


 सुबह तुम यही सुंदर संदेश लाई हो 


नाम काम धाम से शैलजा ही रहो तुम 


यही अभिलाषा आज देने आई हो 


आलोक का क्या वह अंधेरे में भी साथ है 


बस यही बात वह अब समझ पाई हो 


मेरी प्रिय बहन को जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामना भगवान तुम्हें सारी खुशियां दे

समय ही सबसे बड़ा इम्तिहान है

 जिन्दगी किस तलाश में,

मौत से जुदा है ,

मिल जाये तो मिटटी ,

खो जाये तो ख़ुदा है ,

दूर तलक आसमान से ,

फैले तेरे अरमान है ,

बंद मुठ्ठी में भी तेरे,

तरसा एक आसमान है ,

पकड़ता रहा ना जाने क्या,

मिटटी के घरौंदे में 

गुजर रहा जो बगल से,

वो समय तेरा इम्तहान है ....................

सिर्फ समय की इज्जत कीजये और पूजिए क्योकि वही आपको बनता और बिगाड़ता है .......

डॉ आलोक चन्टिया

Wednesday, January 18, 2023

अंधेरा भी कुछ देता है

 मुझको मालूम है ,

कि मेरी जिन्दगी में ,

सुबह का सबब ,

थोडा कुछ कम है ,

लेकिन जरा उन ,

अंधेरो से पूछो ,

जो मेरे साथ है,

रौशनी उनका दम है ,

बंजर सूखी जमीन ,

रौंदी गयी पावों से,

सुबह से नहीं वो भी ,

अँधेरी राह से नम है ........................

कष्ट से भागने के बजाये उनका स्वागत कीजिये क्योकि दर्द देकर ही सृजन का अर्थ स्पष्ट किया जाता है|


डॉ आलोक चान्टिया

अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Monday, January 16, 2023

भारत मां चिथड़ों में लिपटी

 विकास का भारत .......राजनीति के आईने में 


सड़क के किनारे ,

भारत माँ चिथड़ो में लिपटी ,

इक्कीसवी सदी में जा रहे देश को दे रही चुनौती ,

खाने को न रोटी ,

पहनने को न धोती ,

है तो उसके हाथ में कटोरा वही ,

जिससे झलकती है प्रगति की पोथी सभी ,

किन्तु 

हर वर्ष होता है ब्योरो का विकास ,

हमने इतनो को बांटी रोटी ,

और कितनो को आवास ,

लेकिन 

आज भी है उसे अपने कटोरे से आस ,

जो शाम को जुटाएगा ,

एक रोटी ,

और तन को चिथड़ी धोती ,

पर ,

लाल किले से आयगी यही एक आवाज़ ,

हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास 

हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास

Saturday, January 14, 2023

मैं पश्चिम का सूरज हूं

 मै पश्चिम का सूरज हूँ ,


तुम पूरब के बन जाओ ,


मै निस्तेज तिमिर का वाहक ,


तुम पथ के दीपक बन जाओ ,


मै और तुम दोनों है रक्तिम ,


अंतर बस इतना पता हूँ ,


तुम उगने का अर्थ लिए ,


मै उगने की राह  बनाता हूँ


....डॉ आलोक चांटिया  

Tuesday, January 10, 2023

लड़की के हिस्से में दर्द

 

लड़ ...........की
लड़ ...........के ,
की से के तक ,
लड़ लड़ कर ,
हम क्या कर रहे  है ,
क्या हम जी रहे है ,
या उसको शराब ,
की जगह पी रहे है ,
कितने दुखी दिखे ,
जब उसकी पदचाप ,
गर्भ में सुनी तुमने ,
फिर क्यों लूटा ,
सड़क,बस , शहर ,
हर कही तुमने ,
कैसे मनुष्य हो तुम ,
उस जानवर से बेहतर ,
जो कभी कही भी ,
मादा को नही भरमाता,
न तो माँ कहता ,
ना बहन , पत्नी और ,
प्रेमिका बता कर खुद ,
एक प्रश्न बन आता ,
एक बार तो सोच लो ,
औरत का क्या करना ,
तुमको अपने जीवन में ,
क्यों कि हांड मांस में ,
उसके हिस्से क्यों आती ,
मौतों के तरीके जीवन में .............................जीवन में हम अपने लिए जीवन के सुख तलाशते हा और औरत के लिए मौत के प्रकार ???? क्या ऐसा नहीं है तो फिर औरत प्राक्रतिक तरीके से इतर ज्यादा क्यों मर रही है ??????????????/वह किसी जंगल में रह रही है ????????????? आलोक चांटिया

Monday, January 9, 2023

लड़की होने का दर्द

 लड़ ...........की 

लड़ ...........के ,

की से के तक ,

लड़ लड़ कर ,

हम क्या कर रहे  है ,

क्या हम जी रहे है ,

या उसको शराब ,

की जगह पी रहे है ,

कितने दुखी दिखे ,

जब उसकी पदचाप ,

गर्भ में सुनी तुमने ,

फिर क्यों लूटा ,

सड़क,बस , शहर , 

हर कही तुमने ,

कैसे मनुष्य हो तुम ,

उस जानवर से बेहतर ,

जो कभी कही भी ,

मादा को नही भरमाता,

न तो माँ कहता ,

ना बहन , पत्नी और ,

प्रेमिका बता कर खुद ,

एक प्रश्न बन आता ,

एक बार तो सोच लो ,

औरत का क्या करना ,

तुमको अपने जीवन में ,

क्यों कि हांड मांस में ,

उसके हिस्से क्यों आती ,

मौतों के तरीके जीवन में .............................जीवन में हम अपने लिए जीवन के सुख तलाशते हा और औरत के लिए मौत के प्रकार ???? क्या ऐसा नहीं है तो फिर औरत प्राक्रतिक तरीके से इतर ज्यादा क्यों मर रही है ??????????????/वह किसी जंगल में रह रही है ????????????? डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

जोशीमठ का दर्द और धरती

 


धरती कहती हमसे

कब तक मुझसे खेलोगे
कभी तो तुम भी झेलोगे
देखो कैसे दरक रहे हैं
घर तुम्हारे सरक रहे हैं
गलती से तुम मालिक बन बैठे
घूमो दुनिया तुम ऐठे ऐठे
माना मुझको मां कहकर
तुमने शीश झुकाया है
पर मां के हिस्से में देखो तो
कितना बोझ बढ़ाया है
कब तक सहकर तुमको पालू मैं
यह तो तुम सोचो किसी भी पल
वरना जोशीमठ जैसे आएंगे
ना जाने कितने  ही कल
मैं तो फिर भी रह जाऊंगी
धरा कहा है तुमने मुझको
पर तुम खुद तो मिट जाओगे
सोच सिहर जाती हूं तुझको
मत बिगड़ो अब तुम मुझको
अभी कुछ कहां है बिगड़ा
थोड़ा तुम भी संभल कर चल लो
धरती सबकी  सब धरती के
थोड़ा-थोड़ा मिलकर चल लो
पशु पक्षी जीव जंतु पौधे सबकी
मैं मां बनकर रहती हूं
इसीलिए नित्य सांझ सवेरे
तुमसे मैं यह कहती हूं
मत उलझाओ सिर्फ अपना
कहकर नित्य सांझ सवेरे
मेरे तो सब अपने हैं
सब मेरे हैं बहुत चितेरे
बस  जीने की इच्छा लेकर
मुझको तुम उतना ही खोदो
जिसमें खुद को एक दिन कही
तुम आलोक खुद को ना खो दो

आलोक चांटिया

Sunday, January 8, 2023

लड़की की दुनिया में क्यों पैदा होकर आए

 पेट में लात ,

खा कर मैंने ,

माँ होने का ,

एहसास पाया है ,

बचपन की गलियां ,

छोड़ कर मेरा ,

पत्नी नाम आया है,

कलाई में राखी ,

पर राख हुई फिर भी ,

मेरी ही काया है ,

कैसे मैं समझू ,

लड़की को दुर्गा ,

लक्ष्मी , सरस्वती ,

या फिर काली ,

लूटते हो लज्जा ,

करते हो व्यभिचार

उत्पीड़न और प्रहार

कहकर उसकी लाली ,

बचपन से कोमल ,

कहकर मुझ मानव को ,

बना कर भला क्या पाए ,

कही हत्या , कही 

बलात्कार कहीं एसिड 

सिर्फ क्यों

मेरे हिस्से लाये ,

सच बताओ और 

सोच कर देखो क्या ,

एक लड़की गर्भ  से ,

कभी बाहर आये ...


लड़की को आज के दौर में किस लिए पैदा होना चाहिए और हम उसके लिए दिल से क्या करना चाहते है , ......मुझे नहीं अपने साथ जुडी किसी भी लड़की के लिए बस सोच भर लीजिये मेरा शब्द सार्थक हो जायेगा ....


आलोक चांटिया

Saturday, January 7, 2023

जमीन से जो जुड़कर रहते हैं

 जमीन के साथ जुड़कर ही 

किसी का भी 

जीवन निखर पाता है

 एक बीज भी अपने 

अंदर की छुपी हुई प्रतिभाओं को

 दुनिया को बता पाता है 

दुनिया भी पा जाती है 

पत्ती फूल फल तना और छाया 

जब भी जमीन से 

जुड़कर रह जाता है 

सोच कर देखो तुम अपनी 

जमीन से कितना जुड़े हो 

क्या उस जमीन के लिए तुम 

कभी कहीं किसी भी पल खड़े हो 

या तुम्हारे अंदर से 

निकल कर आया है जमीन से 

जुड़ कर तुम्हारे व्यक्तित्व का 

वह सारा सार 

जिससे आज तक था अनजान 

यह सारा आलोक संसार 

गर जमी से जुड़कर 

नहीं रहना सीखोगे तो भला अपनी

 पहचान से इस दुनिया को क्या दोगे 

जो तुम्हारे अंदर है वह 

बाहर आने का रास्ता है 

इस जमीन से जुड़ना 

देखो कुछ भी कर लो पर जमीन से

 मुंह फेर कर कभी ना कहीं मुड़ना 

आलोक चांटिया

Friday, January 6, 2023

सच से दूर हो रहे हो

 दूर खड़े होकर देखने पर

 आसमान भी नीला

 दिखाई देता है 

क्षितिज के उस पार 

धरती से आसमान 

मिलता भी दिखाई देता है

 दूर से देखने पर 

समुद्र भी आगे जाकर

 ढलान पर दिखाई देता है 

दूर से देखने पर 

एक विशाल तारा भी 

टिमटिमाता हुआ दिखाई देता है

 किसे अच्छी नहीं लगती हैं 

दूर के देशों की 

अजीबो गरीब कहानियां 

किसे सुंदर नहीं लगती हैं 

दूर से किसी परियों की बातें 

पर क्या पास आने पर 

यह सच होता है या फिर 

आसमान अपनी जगह होता है 

धरती अपनी जगह होती है 

क्षितिज जैसा कुछ भी नहीं होता है 

ना कोई परी होती है 

ना कोई भी सच्ची कहानी होती है 

सच यह है कि तुम सब 

दूर खड़े होकर देख रहे हो 

इसीलिए सच से दूर हो रहे हो 

आलोक चांटिया

Wednesday, January 4, 2023

पत्थर का भाग्य

 

रेत के ,
छोटे छोटे ,
कणों सा ,
बनकर बिखरा हूँ ,
मैं पत्थर ,
अपने जीवन ,
की दुर्दशा से ,
बहुत सिहरा हूँ ,
ऐसा नहीं मेरे
जीवन में कुछ भी
अच्छा नहीं होता है
कभी-कभी कोई
मेरा ही साथी किसी
मंदिर का शिवलिंग
बनकर हिस्सा होता है
किसी पर छीनी
हथौड़े की मार से
एक सुंदर तस्वीर भी
उकेरी जाती है
पर हर पत्थर की
जिंदगी में यह बात
रोज कहां आती है
ज्यादातर सिर्फ रेत
बनकर घर में
सिमट जाते हैं
पत्थर दिल होने के
अपमान से हम कहां
आलोक बच पाते हैं।

आलोक चांटिया

.रात गहरा रही है पर पता नहीं क्यों नींद कोसो दूर है , मौत का सच जनता हूँ पर यह नहीं जान पा रहा की इस दुनिया में किस मकसद से आया हूँ ..............क्या मैं सिर्फ खाना , शादी के लिए ही पैदा हुआ हूँ या कभी कुछ बेहतर कर पाउँगा ??????????????????////////

Tuesday, January 3, 2023

रेत का जीवन

 रेत के ,

छोटे छोटे ,

कणों सा ,

बनकर बिखरा हूँ ,

मैं पत्थर ,

अपने जीवन ,

की दुर्दशा से ,

बहुत सिहरा हूँ ,

पर खुश भी हूं संग मैं तेरे ,

अगर रेत बना तो ,

मकान बनाओगे ,

और पत्थर को तो तुम ,

भगवान कहकर ,

मंदिर में सजाओगे ,

क्योंकि तुम मानव हो ,

तुमको टूटने बिखरने को भी,

 संजोना आता है ,

एक तिनके से ,

घर बनाना आता है ,

थपेड़ों ,अंधेरों ,तूफानों से ,

जीने का तुम्हारा ,

अपना एक सुंदर नाता है

डॉ आलोक चांटिया

यथार्थ होने का सच

 चिन्ताओ के ,

भंवर में फसकर ,

कौन कहाँ ,

जी पाता है ,

स्वप्निल दुनिया ,

के सपने लेकर ,

हर कोई यहाँ ,

पर आता है ,

मिल जाये सभी ,

कुछ तो अच्छा है ,

खो जाने पर ,

पछताता है ,

जो पाया है ,

कर्म के पथ पर ,

कण कण हर क्षण ,

जाने कब बिक जाता है ,

कब समझा मानव ,

दुसरो के दर्द  को ,

खुद के सुख में ,

हस नहीं  वो पाता है ,

धीरे धीरे सब ,

सपने को खोकर ,

पथराई आँखों से वो  ,

श्मशान तलक ही आता है ,

क्यों न समझा आलोक ,

ये छोटा सा मर्म यहाँ ,

अंधकार को सच समझ ,

उसका कैसा ये नाता है .......................क्या हम भूल रहे है है की हम जितने भी सुख के पीछे भाग ले और किसी कुचक्र से उसको पा भी ले पर जाना तो है ही .............हम सब अपने पूर्वज के नाम तक नहीं जानते तो आपके इस कार्यो के लिए कौन आपको याद करने जा रहे है ....अगर् यह सच है तो आइये थोडा भाई चारा और सुकून को जी ले आलोक चांटिया

Monday, January 2, 2023

समय की कीमत

 कली के भीतर ही,

 फूल का सार है ,

अंधेरों में ही रोशनी का,

 निकलता संसार है ,

समय कुछ भी नहीं सिर्फ,

 मन का फेर है ,

सब कुछ तुम्हारी मुट्ठी में है ,

नहीं समझे तो सब अंधेर है,

 यह समझना ही तुम्हारी भूल है, 

कि कल एक सुंदर समय आएगा, 

जो अपने अंदर को पहचान लेगा, 

वही बाहर भी सुख पायेगा ,

समय तुम्हारे रहने न रहने का, 

एहसास कराने का एक पैमाना है, 

जिसने यह समझ लिया उसका ,

अस्तित्व ही समय ने स्वयं माना है,

 समय को महीना, हफ्ता, साल, 

कहकर जिन प्रसन्नता को ,

तुम विकल दिखाई दे रहे हो,

 वह तो सिर्फ तुम्हारी यात्रा है, 

क्या उसे तुम कोई पूर्णता दे रहे हो ,

जिस दिन अपने अंदर के,

 आदमी को पहचान लोगे, 

आत्मविश्वास को इस संसार में, 

एक नया नाम दोगे ,

वही क्षण होगा तुम्हारा नया साल, 

और तुम्हारे जीवन का एक अर्थ, 

वरना यूं ही गुजरते रहेंगे साल दर, 

साल और तुम होगे सिर्फ तदर्थ। 

आलोक चांटिया