Tuesday, May 20, 2025

मां का सच आलोक चांटिया "रजनीश"

 मां का सच


सृजन वही कर सकता है

जो किसी के लिए मरता है

सह सकता है दर्द असहनीय

वही हो सकता है समाज में वंदनीय

यही पाठ हर मां हर बच्चे को सिखाती है

जब इस दुनिया में वह उसको लेकर आती है

न जाने कितने विषम

परिस्थितियों से होकर गुजरती है

रक्ताल्पता दर्द और न जाने

किस-किस को लेकर वह मरती है

तब जाकर वह एक दिन किसी घर में

किलकारी के फूल खिला जाती है

वह मां है जो एक परिवार एक समाज

बिना किसी मोल के बना जाती है

हर दिन हर पल दुनिया में न जाने

कितने लोग सृजन की बात करते हैं

समाज को बनाने की बात करते हैं

पर स्वयं को बनाने के अलावा

ज्यादातर वह क्या करते हैं

कहां सीख पाते हैं मां से

किसी को बनाने का वह विश्वास

जिसमें मौत भी हो सकती है पर

कभी नहीं करती वह अपने पर अविश्वास

पर कोई भी दुनिया में मां को

पद्म श्री देने के लिए नहीं बुलाता है

क्योंकि उसके हिस्से में प्रकृति और

उसके कार्य को कोई नहीं समझ पाता है

सभी मानते हैं इसमें उसने कौन सा

ऐसा काम कर दिया है

पशु जगत में तो हर कहीं

किसी न किसी ने किसी को जन्म दिया है

पर एक जानवर को संस्कृति के औजारों से

बनाते हुए मनुष्य सिर्फ मां बना पाती है

क्या कभी किसी को किसी सम्मान में

किसी भी मां की याद आती है

किसी भी मंदिर में कोई मां की

तस्वीर भी नहीं लगाना चाहता है

वह सिर्फ जिस भगवान को उसने देखा ही नहीं

उसी को मानकर जी जाना चाहता है

मां को कोई भी भगवान बनाने के लिए

आगे नहीं बढ़ता है

फिर भी क्या कोई मां का मन

अपने बच्चों से चिढ़ता है

हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छुपा कर

मां के लिए जीने की कोशिश कर रहे हैं

नदी धरती सभी को

छलावे के साथ मालिन कर रहे हैं

फिर भी कोई मां दुनिया को बनाने से

मुंह नहीं मोड़ती है

और प्रसव पीड़ा से हर

घर को जीवन से जोड़ती है

आलोक चांटिया "रजनीश"


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