Friday, May 16, 2025

प्रेम का सच आलोक चांटिया "रजनीश"

 प्रेम का सच

कितनी अजीब सी बात होती है

कि दिन होता है रात होती है

जीवन पल प्रतिपल चला जाता है

हर दिन अपने लिए अपनी भूख

अपनी प्यास के लिए न जाने कितने

लोगों से मिलने जाता है

पर कितना आसान

व्यक्ति को यह लगता है

कि वह किसी से प्यार करता है

उसी के लिए जीता है उसी के लिए मरता है

पर जब उसका वही प्रेम करने वाला

व्यक्ति इस दुनिया से चला जाता है

तो फिर वह कैसे अपनी सांसों को

इस दुनिया में चलता हुआ पाता है

कोई कभी भी सच को मान क्यों नहीं पाता है

कि हर कोई मोल भाव तर्क

वितर्क के साथ प्रेम करने आता है

वह जानता है कि प्रेम की भी

अपनी सीमा होती है

इसीलिए जब सांसों की बात

कहीं भी होती है

तो प्रेम चुपचाप दूर खड़ा हो जाता है

क्योंकि वह अपनी सांसों को

उस प्रेम के लिए नहीं को दे पाता है

जो प्रेम अपनी सांसों को बंद करके

इस दुनिया से चला जाता है

फिर कोई कैसे कह सकता है

कि वह प्रेम में दो शरीर एक जान होते हैं

फिर एक के चले जाने के बाद

दूसरे के हर काम क्यों नहीं खोते हैं

बाजार की इस दुनिया में

प्रेम का भी अजीब सा

यह चलन देखने को मिल रहा है

हर कोई गली मोहल्ले चौराहे पर

प्रेम करता मिल रहा है

पर वह प्रेम तभी तक चल रहा है

जब तक प्रेम करने वाला

इस दुनिया में मिल रहा है

दुनिया से चले जाने के बाद प्रेम करने वाला

इसे विरह वियोग कहकर जीने लगता है

पर अपने प्रेम के खातिर

कब कहां कोई मरता है

यह सच है कि बहुत से

ऐसे उदाहरण पूरी दुनिया में पड़े हुए हैं

जिसमें प्रेम के लिए किसी के

चले जाने के बाद कई मर गये है

पर सच तो यह है कि एक लंबा सिलसिला

इस सच का भी रह गया है

कि प्रेम करने वाला यह जानता है

कि उसे प्रेम कहां तक करना है

चिता पर जलने वाले के साथ

न जाना है ना ही उसे मरना है

फिर भी हर व्यक्ति कहता है

मैं बहुत गहराई से प्यार करता हूं

मैं किसी के लिए जी जान से मरता हूं

इस झूठ को देखकर हम सब चल रहे हैं

बस अपने मतलब के खातिर

कभी-कभी किसी मोड़ पर

किसी से मिल रहे हैं

सच तो यही है जो हम मान नहीं पाते हैं

कि जिससे हम प्यार करते हैं

उसके जाने के बाद भी

अगर हम यहां रह जाते हैं

तो हम दिमाग चला कर प्रेम करना जान गए हैं

बस कुछ वक्त के लिए अपना

समय गुजारने के लिए किसी को

अपना मान गए हैं

इसी को प्रेम कहने की एक लंबी विरासत

हम लेकर प्रेम को ढूंढने निकलते हैं

पर सच बताइए सच्चे प्रेम करने वाले

अब इस दुनिया में कहां मिलते हैं

जो जीने के साथ-साथ

मरने की भी कसम खाते हो

भले ही वे अलग-अलग

इस दुनिया में आते हो

आलोक चांटिया "रजनीश"


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