Monday, May 19, 2025

मां मुझे रास्ता दिखाओ- आलोक चांटिया "रजनीश"

 

मां मुझे रास्ता दिखाओ

जीवन मेरा किधर जा रहा है
क्यों ऐसा लगता है
कि इधर-उधर जा रहा है
एक सच जो मैं जानता हूं
कि जीवन उस रास्ते पर भी जा रहा है
जहां से मौत का संदेश
मुझे ही नहीं हर किसी को आ रहा है
पर इस दुनिया में जीने के लिए
मेरी कोई इच्छा तो नहीं रह गई है
पर मेरे अंदर को सजाने वाला
शरीर हर पल जीना चाहता है
इस दुनिया में आने वाले हर कल को
अपनी सांसों में पीना चाहता है
इसीलिए उस शरीर के खातिर
मैं जानना चाहता हूं हर पल
कि किस रास्ते से जाऊं
जहां पर सुंदर हो मेरा कल
इसीलिए भगवान तुम मुझे
इस बात को बताने का
कोई तो इशारा कर दो
इस तरह बीतते जीवन को
एक तिनके का सहारा कर दो
अब तो मेरी मां भी
तुम्हारे पास रहने को चली गई है
सच कहूं तो अब वह तुम्हारी तरह ही
मेरे लिए भगवान और देवी सी रह गई है
उन्हीं को एक बार तुम यह बता देना
या फिर उनसे यह कह देना
कि एक रात मेरे सपने में
आकर मुझे बता जाएं कि
भला इस जीवन में किस तरफ अब हम जाएं
यूं ही खत्म हो जाऊं इसका कोई भी
प्रयास नहीं करना चाहता हूं
क्योंकि मां के नाम और गरिमा को
हर पल आगे रखना चाहता हूं
मैं चाहता हूं पूरे सम्मान के साथ
मानव होने का वचन निभाता जाऊं
मां के दूध का कर्ज़
इस दुनिया को दिखाता जाऊं
इसीलिए मां से यह रोज-रोज पूछ रहा हूं
अपने जीवन के रास्ते को
जानने के लिए ना जाने कितना जूझ रहा हूं
भगवान को तो देखा नहीं है मैंने
ना देखने की कोई इच्छा रह गई है
पर भगवान के रास्तों पर खड़ी मेरी मां
मेरे अंतस में इसी दुनिया में रह गई है
बस उसी के लिए अब
हर पल जीना चाहता हूं
सच बताओ जीवन के किन रास्तों को
मैं अपने कर्मों से पीना चाहता हूं
कहते यही है सभी कि मां अपने बच्चों की
हर बात बिना बताए ही समझ जाती है
फिर भी मेरे हिस्से में उसकी
कोई भी बातें अब मेरे पास क्यों नहीं आती है
एक बार मुझको फिर से उन्हीं
उंगलियों का सहारा क्यों नहीं मिल रहा है
जिससे मुझे आभास मिले कि
पूर्व का सूरज शायद मेरे अंदर से निकल रहा है
मेरे अंदर के अंधेरे को मिटाने के लिए
मुझे एक बार आकर बता जाओ
कोई तो उजास का पल होगा
मेरी मां मुझे तुम आकर दिखा जाओ
आलोक चांटिया "रजनीश"

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