Saturday, May 24, 2025

माँ का रिश्ता आलोक चांटिया "रजनीश"

 माँ का रिश्ता

आलोक चांटिया "रजनीश"


जब से मेरी माँ

मुझे छोड़कर चली गई है,

दुनिया

बस यादों का एक झरोखा बन गई है।


सुबह, दोपहर, शाम, रात—

जब भी कुछ सोचता हूँ,

सच कहूँ,

हर विचार में

माँ की कही कोई न कोई बात

बार-बार लौट आती है।


मैंने देखा है—

दुनिया को एक अजीब सी उलझन रहती है।

शायद इसी वजह से

वो हर बार मुझसे कहती है—

“कुछ तो निकलो बाहर,

और दुनिया को जीने की कोशिश करो,

कर्म के पथ पर एक बार 

फिर से कुछ तो करो”


पर मैं—

ना दुनिया को समझ पाता हूँ,

ना उसकी बातों को सुनने आता हूँ।


मुझे तो बस यही लगता है

कि हर रिश्ते में

माँ का रिश्ता कुछ अलग सा होता है।


और शायद इसी कारण,

माँ के जाने के बाद भी

मेरा मन बार-बार

उसी में खोता है।

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