Thursday, May 15, 2025

मां तुमको खोज रहा हूं


यह जानने के बाद भी कि
दुनिया में कोई अमर होकर नहीं आता है
जो भी सांसो को लपेट कर चलता है
वह एक दिन इस दुनिया से ही जाता है
फिर भी न जाने क्यों अब
मेरा मन कहीं नहीं लगता है
शरीर तो सो जाता है पर
दिमाग हर पल जगता है
मां का चला जाना मेरे सारे
ज्ञान मेरे सारे दर्शन को शून्य बन गया है
बस मुझे ऐसा लगता है कि
मेरा सारा जहां छिन गया है
मैं मानता हूं कि जब मैं
पैदा नहीं हुआ था तो अपनी
मां के गर्भनाल से जुड़कर मैं
इस पूरी दुनिया को समझता था
खाता था पीता था और
इस दुनिया में आने के सपना देखा करता था
पर जब इस दुनिया में आ गया तो
उसी मां की उंगली के सहारे चलना सीखा
दुनिया को देखना सीखा
पर अचानक वह उंगली छूट गई है
मेरी मां मुझसे रूठ गई है
यह बता कर कि दुनिया से
अब वह जा रही है
अब मुझको अपने सहारे रहना है
और अपने हर दुख दर्द को
खुद अपने से ही कहना है
पता नहीं क्यों मैं एक छोटी सी
साधारण सी बात नहीं समझ पा रहा हूं
जिसको समझता हुआ हर कीड़ा मकोड़ा
जीव जंतु आदमी को पा रहा हूं
कैसा मेरे साथ क्यों हो रहा है
मेरा दिल आज क्यों रो रहा है
मैं क्यों सन्नाटे में वह सच ढूंढने लगा हूं
मां तेरे जाने के बाद
तुझे फिर से खोजने लगा हूं
आलोक चांटिया "रजनीश"

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