वजूद
बिन ग्रहणी घर भूत का डेरा
क्या मेरा क्या उसका क्या तेरा
इसीलिए घर से भूत भगाने के लिए
लोग ग्रहणी को ले आते हैं
और एक दिन उसके ही
जीवन को भूत बना जाते हैं
जो चाहती थी यह मानना कि
वह भी पूरी पूरी आदमी
बनकर ही इस दुनिया में आई है
पर बहती नदी के तरह उसके
हिस्से में समुद्र और वह
मुट्ठी में अंधेरे को पाई है
अंतहीन रास्तों पर सबके लिए
जीते चले जाना
भला कौन सोचता है कि
उसे भी तो है कुछ पाना
इसीलिए कभी-कभी नदी
बाढ़ बन जाती है
जब वह अपने लिए सोचती है और
अपने को ढूंढने में लग जाती है
आलोक चांटिया
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