एकांत
मिट्टी के तन में कई बार,
मैंने कई पौधे उगते देखे हैं ,
फलते फूलते फूल,
खिलते देखे हैं ,
मिट्टी के तन में कई बार मैंने ,
लोगों को पानी डालते देखा है,
ताकि उस पर उगते हुए पौधे,
जीवन का मतलब समझ जाए ,
देखा है मैंने मिट्टी को थक कर,
हार कर पौधों का साथ छोड़ते हुए,
जो चाह कर भी अब ,
खेल नहीं सकते हैं प्रकृति में ,
हरियाली से मिल नहीं सकते हैं ,
सूख जाते हैं टूट जाते हैं ,
खत्म हो जाते हैं क्योंकि वह,
अपने जीवन में मिट्टी का अर्थ,
कभी समझ नहीं पाते हैं,
मिट्टी में बहती स्त्री का मर्म,
निगल नहीं पाते हैं ,
कभी भी मिट्टी में औरत को,
ढूंढ पाते ही नहीं है ,
एक बार भी उसका एकांत ,
तोड़ने के लिए आते ही नहीं है,
जब इस एक होने का ,
अंत हो जाता है ,
स्त्री की देह से निकलकर एक,
पुरुष सूखकर मर जाता है ,
मिट्टी के कारण ही इस प्रकृति में,
सब कुछ चल रहा है ,
जिस पल यह मान जाते हैं,
उसी क्षण स्त्री के एकांत को ,
खुशियों के सागर में लेकर चले जाते हैं ।
आलोक चांटिया
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