Wednesday, December 4, 2024

एक बीज जानता भी था- आलोक चांटिया


 एक बीज जानता भी था,

 मानता भी था कि समय,

किस तरह से उसे ,

बना भी सकता है,

 बिगाड़ भी सकता है ,

आराम के जीवन की खोज में,

 अगर वह रह जाएगा,

 तो यह समय उसे बीज को,

 किसी बोर में सडा जाएगा,

 इसीलिए कर्म की परिभाषा में,

 उसने चलना सीख लिया है,

 एक बीज ने मिट्टी की ,

अतल गहराई में, अंधेरे में,

 जीना सीख लिया है,

 वह जानता है कि जब समय,

 उसका साथ छोड़ कर,

 आगे निकल जाएगा ,

तब भी वह बीज तो मिट्टी में,

 गुमनाम मर जाएगा ,

लेकिन समय को बताने के लिए, 

जमीन से एक सुंदर सा,

 पौधा निकल आएगा,

 जो पहचान होगा उस,

 बीते हुए समय की जो,

 दुनिया को यह बतला जाएगा,

 कि समय रुकता नहीं है,

 किसी के लिए पर अगर,

 समय के साथ जीना सीख लिया है,

 तो देखो एक बीज ने,

 अपने अंदर से एक पौधे को,

 देना आलोक सीख लिया है,

 तुम भी देख सकते हो,

 तुम्हारे अंदर समय के साथ,

 क्या निकल सकता है ,

तुम रहो ना रहो पर इस दुनिया को, 

तुम्हारे साथ बीते समय से ,

देखो क्या क्या मिल सकता है,

तुम्हारे साथ बीते समय से,

 देखो क्या-क्या मिल सकता हैl

आलोक चांटिया

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