उन्होंने अपराध सिर्फ यही किया था,
कि आदमी पर भरोसा किया था,
सोचा था जब इस जमीन पर,
सबसे खूबसूरत वही बनाए गए हैं,
तो ऐसे आदमी किस्मत से,
उनके जीवन में पाए गए हैं,
इठलाये लहराये न जाने कितने,
झोके दिए गर्मी में ,
छांव को पाने के लिए,
वह पौधे न जाने कब पेड़ बन गए,
और कितनी ही बार उस ,
आदमी के लिए जिए ,
पर जिस पर वह इतना,
भरोसा कर रहे थे,
जिसको ठंडक पहुंचाने के लिए,
वर्षों से मर रहे थे ,उस
आदमी को क्या मतलब था कि,
पौधों में भी जान होती है,
उनकी भी इस यात्रा की
कुछ आन और मान होती है,
वह भी चाहते हैं मिट्टी से जुड़कर,
अपना जीवन पूरा जीना,
पर उन्हें कहां पता था कि,
उन्हें आदमी के साथ रहने का ,
जहर भी था पीना ,
ठंडक ने दस्तक के आते ही,
आदमी को धूप पाने की,
ललक ऐसी जगने लगी,
जिस पौधे को उसने पाला पोसा था,
उसकी छाया ही ,
उसको जहर लगने लगी,
एक पल भी ना सोचा ,
जिसे दुलराया था खिलाया था,
इतना बड़ा बनाया था ,
उसको कितना दर्द हो जाएगा,
जब खटाई खटाक कुल्हाड़ी की,
आवाजों से एक पौधा जीवन के सुर,
रखकर भी मौत को पाएगा,
हुआ भी यही पेड़ ने जिस,
आदमी पर भरोसा करके उसके,
चारों तरफ निकलने की,
गलती किया था आज आदमी ने,
सिर्फ एक कतरा धूप के लिए,
उसकी जान ले लिया था,
आज आदमी ने सिर्फ ,
एक कतरा धूप के लिए ,
उसकी जान ले लिया थाl
आलोक चांटिया
नोट -सिर्फ अपनी सुख की तलाश में पौधों की हत्या मत कीजिए
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