कितनी अजीब सी बात है,
कि हर किसी के जीवन में,
जरूर एक रात है,
फिर भी हर कोई ,
उजाले के लिए ही बात करता है,
उसी के लिए जीता है,
उसी के लिए मरता है,
जबकि बिना अंधेरे के ,
उजाले की बात बेमानी हो जाती है,
भला कब आसमान में बिना,
अंधेरे के तारों की बारात आती है,
फिर भी चलता रहता है कि,
जीवन में मेरे दुख क्यों आया ,
मेरा जीवन का पथ,
कोई भी संघर्ष क्यों पाया,
प्रसन्नता क्यों नहीं थिरकी,
हमारे जीवन के आंगन में,
क्यों नहीं हमारा पग,
एक हिमालय सी ऊंचाई पाया,
यही दर्द जब तक चलता रहता है,
हर कोई तब तक,
एक दुख में रहता है,
अगर वह जान लेता मान लेता,
और यह ठान भी लेता कि,
वह कुछ भी कर सकता है तो,
एक बात वह जरूरी याद रखता,
जब वह पूर्व की तरफ ,
पूरे जोश में तकता,
कि आज जिस रोशनी को,
वह आलोक देख रहा है,
वह अंधेरे के रास्ते से ,
गुजर कर यहां तक आई है,
तभी तो जिंदगी में घर के आंगन में,
फूलों की बगिया में फसलों के खेतों में,
एक प्यारी सी खुशबू आई है,
जो यह सारी बातें समझ जाते हैं,
वह अंधेरे के भी थोड़ा सा,
जब तब करीब आते हैं l
आलोक चांटिया
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