आज दुनिया को जोर से
चिल्ला कर बता दे,
अधिकार की बात छोड़ो,
कर्तव्य क्या होते हैं,
उसे ही जता दें ,
नींद मिट्टी को ही बिस्तर,
समझ कर सुला देती है,
मां की गोद सुरक्षा के सारे,
इंतजाम कर देती है,
लिपटकर उससे भूख भी,
न जाने कहां खो जाती है,
क्योंकि मां जानती है ,
इस दुनिया में जब भी ,
चिल्लाने की बारी आती है,
तो वह अपने चारों ओर,
सन्नाटा पाती है ,
फिर भी लोग कहते मिल जाते हैं,
मानवाधिकार मानवाधिकार क्या है,
इसके बारे में बताते हैं ,
कोई भी नहीं रुकता ,
जीवन को थाम कर यहां,
मानवाधिकार का हनन,
उसका नाटक हर चौराहे पर,
रोज आलोक दिखाते हैं,
इसीलिए अब सच जीने की,
बारी यहां आ गई है ,
कीचड़ में मां के साथ बच्चों को,
एक अच्छी सी नींद आ गई हैl
आलोक चांटिया
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