Tuesday, December 10, 2024

मानवाधिकार -आलोक चांटिया


 आज दुनिया को जोर से 

चिल्ला कर बता दे,

 अधिकार की बात छोड़ो,

 कर्तव्य क्या होते हैं,

 उसे ही जता दें ,

नींद मिट्टी को ही बिस्तर,

 समझ कर सुला देती है,

 मां की गोद सुरक्षा के सारे,

 इंतजाम कर देती है,

 लिपटकर उससे भूख भी,

 न जाने कहां खो जाती है,

 क्योंकि मां जानती है ,

इस दुनिया में जब भी ,

चिल्लाने की बारी आती है,

 तो वह अपने चारों ओर,

 सन्नाटा  पाती है ,

फिर भी लोग कहते मिल जाते हैं,

 मानवाधिकार मानवाधिकार क्या है, 

इसके बारे में बताते हैं ,

कोई भी नहीं रुकता ,

जीवन को थाम कर यहां,

 मानवाधिकार का हनन,

 उसका नाटक हर चौराहे पर,

 रोज आलोक दिखाते हैं,

 इसीलिए अब सच जीने की,

 बारी यहां आ गई है ,

कीचड़ में मां के साथ बच्चों को,

 एक अच्छी सी नींद आ गई हैl 

आलोक चांटिया

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