आंख
यह आंखें न होती तो,
दुनिया जान ही न पाती ,
कि यह ठंडी हवाएं,
कहां से हैं आती ,
यह आंखें न होती ,
तो जान न पाती ,
कि प्रकृति की खूबसूरती,
कौन कैसे हैं पाती ,
आंखों का क्या है थक कर,
अक्सर सो भी जाती है ,
वहां भी सपने जीवन के,
कई अनोखे पाती हैं ,
चौक कर खोल देती हैं जब,
पूर्व की तरफ से ,
कोई रोशनी पाती है,
जानती है दरवाजे पर,
एक दस्तक हो रही है ,
जब किसी को गलती से ही ,
सही अपना होता पाती हैं ,
कभी-कभी आंखों को लोग ,
गलत समझ जाते हैं ,
जब अपने इश्क के लिए,
सूरदास बन जाती है ,
आंखें खुद अपने रास्तों पर,
दौड़ती चली जाती हैं,
कोई उन्हें अच्छा, कोई खराब,
कोई चिपकने वाला, कोई घूरने वाला,
कहता हुआ पाती है ,
पर आंखों का क्या है ,
जो देखते हैं उसी से ,
अंदर राम कृष्ण रावण की न जाने,
कितनी तस्वीर बना लेती हैं,
और समाज को सत्य, त्याग ,
समर्पण की मंदोदरी, सीता,
रुक्मणी, राधा दे देती हैं l
आलोक चांटिया
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