Wednesday, January 1, 2025

सुजाता एक औरत -आलोक चांटिया


 सुजाता के हाथों का खाना खाकर

 सिद्धार्थ पूरी तरह तृप्त हो गए थे 

जिन रास्तों के लिए भटक रहे थे 

उन्हीं रास्तों पर वह गौतम हो गए थे

 कल तक जिनकी जिंदगी 

अपनी खोज में लगी हुई थी

 तन से जो कंकाल हो गए थे 

सुजाता की हाथों की खीर खाकर

 वह इसी दुनिया में दिगपाल  हो गए थे 

सुजाता तो एक पेड़ पर भी

 भरोसा करके जी जाती है 

वह मान लेती है कि पेड़ भी सुनता है 

और एक दिन वह उसी से 

पति बेटा सब पा जाती है

 सुजाता कभी नहीं सोचती कि 

औरत के रूप में वह छली जा रही है 

वह तो अपने धुन में अपने 

देने के गुण के साथ बस चली जा रही है

 कहीं कोई पेड़ अमर हो जाता है 

कोई सिद्धार्थ बुद्ध बन जाता है

 यह बात सच है कि कोई

 सुजाता का नाम नहीं लेता पर

 कौन इनकार करेगा 

अपनी पूर्णता के लिए हर कोई

 उसी के पास आता है 

औरत को यूं ही इतना हल्का करके

 देखना ठीक कहां होता है

 हर काल परिस्थिति में 

सुजाता का साथ सभी का होता है 

आलोक चांटिया

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