Saturday, November 30, 2024

आजकल जीवन में, एक अजीब सी दौड़ चल रही हैl आलोक चांटिया


 आजकल जीवन में एक,

 अजीब सी दौड़ चल रही है,

 हर कोई देखना चाहता है ,

किसकी मुट्ठी किस से मिल रही है,

 बंद कर दिया है सोचना,

 हर किसी ने अपने अंदर झांकना,

 बस किसी और के जीवन से,

 किसी और की कहानी मिल रही है, 

संतोषम परम सुखम रहा होगा कभी, 

एक सुंदर सा कथन जीने के लिए, 

अब तो सारा आकाश तुम्हारा है, 

अवसाद हताशा निराशा में ,

कमरों में सांस मिल रही है,

 जानते सभी हैं एक दिन,

 चले जाना है यहां से,

 चाहे जितना बटोर लो फिर भी,

ना जाएगा कुछ साथ में,

 न जाने कितना कुछ पाने की,

 कोशिश हर पल चल रही है,

 राम को राम बनना था ,

लक्ष्मण को लक्ष्मण बनना था,

 ना कोई किसी से कम था,

 ना कोई किसी से ज्यादा था 

 किसी को भी नहीं रह गया है,

 विश्वास विभीषण की तरह ,

सीता के बिना ही,

 सोने की लंका जल रही है,

 कितनी शक्ति बची है मुट्ठी में ,

अब कोई हनुमान से नहीं से पूछता,

 मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ ,

बस इसी में हर कोई जूझता,

 उजाले से दूर अंधेरे में,

 फिर से संस्कृति चल रही है, 

आजकल जीवन में,

 एक अजीब सी दौड़ चल रही हैl

आलोक चांटिया

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