मैंने भी लूटा है खर्च,
होने से पहले सांसो का मजा |
बेवजह दौड़ते पैरो को मिलेगी ,
कब की फ़िक्र कौन सी सजा |
कहते सभी थे रुक जाओ ,
ये उम्र सांसो की कमाई है |
नौ महीने की तपस्या से ये ,
इस दुनिया में आ पाई है |
पर लगा कि ये बकवास तो ,
सदियों से दुनिया ने गायी है ,
कितना थका कि आज मन ,
तन भी देखो उठा ही नहीं है ,
चार कंधो पर चला जा रहा जैसे ,
जीवन आलोक ने छुआ ही नहीं है ......................................जीवन को समझिये और इसको भी पैसे की तरह खर्च करिए वरना मिलकर भी मिटटी में मिल जायेगा..आपका आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन
No comments:
Post a Comment