Monday, June 12, 2023

जिंदगी तलाश रहा हूं कविता द्वारा आलोक चांटिया

 जिंदगी तलाश रहा हूँ ,

तेरे पास आ रहा हूँ ,

कितना सफर है लम्बा ,

न जान पा रहा हूँ ,

कभी धूप की है गर्मी ,

कभी धूप है सुहाती ,

कभी खुद में सिमट कर ,

कभी खुद से बिखर कर ,

बस दौड़ा जा रहा हूँ ,

कभी पास तू है लगती ,

कभी दूर तक न दिखती ,

हर रात रहती आशा ,

साँसों की बन परिभाषा ,

जब खुल कर गगन में ,

उड़ कर जा रहा हूँ ,

तू चील की नजरों से ,

मुझे खोजे जा रही है ,

ये मिलन अधूरा कैसा,

ये सफर कुछ है ऐसा ,

कितना तड़पी जिंदगी है ,

मौत ये कैसी बंदगी है ,

सब जीते आलोक में है ,

अब अँधेरे के लोक में है ,

अब घोसला है खाली,

ये दोनों का मिलन है ,

है जिंदगी एक धोखा ,

ये मौत का जतन है .............

जिंदगी किसी की नहीं पर हम उसे न जाने कितने जतन से जीते है अगर मौत का एहसास कर ले तो कोई क्यों लालच करें ................,

,डॉ आलोक चांटिया

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