कैसे कह दूँ सुबह मुझे मयस्सर ना हुई ,
कई कह दूँ पूरब आफ़ताब की ना हुई ,
पर ना जाने क्यों मन में बादल छाये ,
रौशनी तो दिखी पर कही रौशनी ना हुई l
आलोक चांटिया
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