Tuesday, June 13, 2023

कितनी सुबह कितनी बार आएगी द्वारा आलोक चांटिया

 कितनी सुबह कितनी बार आएगी ,

और तुमको  सोते से जगा पायेगी ,

पश्चिम को कोसना छोड़ दे आलोक ,

जिन्दगी आदमी फिर बन न पाएगी ...................... हम जो भी कर रहे है उसमे रोज यह सोचिये कि खाना , कपडा , प्रजनन , और आवास कि व्यवस्था ( जानवर भी करते है ) के अलावा दूसरो के लिए हम कितना जी पा रहे है ( जानवर दूसरो के लिए नही जीते है और अपने सामने शेर को शिकार करता देखते है पर खुद को बचाने में लगे रहते है ) यही अधिकारों कि रक्षा का मूल मन्त्र है ....सुप्रभात , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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