Tuesday, June 27, 2023
Friday, June 23, 2023
क्यों कहे कि हम जिन्दा है जब ...............
क्यों कहे कि हम जिन्दा है जब ...............
मरने वालो को ही पैसा मिलता है ..................
जब कोई गरीब मरता है यहाँ ..................
तो पुरे परिवार का चेहरा खिलता है ...................
कल भी खबर आई भैया के मरने की................
माँ भी रोई बप्पा भी रोये कहकर ...............
देखो मुन्ना हमको रोटी दे गया ................
जो न कर पाया था जिन्दा रहकर .....................ये एक सच्ची घटना है जो देश की तस्वीर दिखाती है ....................पूरा घर दुखी है मुन्ना के उत्तराखंड में मर जाने पर शुकून भी है कि जिस देश में जिन्दा रहकर एक रोटी मिलना मुश्किल थी वह मरने पर सरकार अपनी दरिया दिली और मानवता के लबादे को ओढ़ कर कुछ जीने का सहारा तो दे देती है ...........................जागो भारत जागो ..................शुभ रात्रि
Wednesday, June 21, 2023
कोई नहीं मैं निपट अकेला ............. चारदीवारी से करता बातें ..........
कोई नहीं मैं निपट अकेला .............
चारदीवारी से करता बातें ................
पत्थर के भगवान सही ................
संग उनके कटती है रातें ..............
सो जाता जब नींद में गहरी ...............
भगवान सभी चिल्लाते है .......................
हमें अकेला निपट छोड़ क्यों .................
मानव खुद सो जाता है .................
सर पटकते , रोते रहते ................
जब मंदिर में मेरे आते है .................
कमरों में लटका फिर हमको ...............
पहरेदारी रात करवाते है ................... जब आप अपने को अकेला कहते है तो सीधे भगवान के अस्तित्व को नकारते है और तब उस भगवान को कितनी पीड़ा होती होगी जो आपके घर में २४ घंटे दिवार पे लटक कर , मंदिर में बैठ कर आपको बचत है ...यानि मानव भागवान का मूल्य तक अनहि समझता और फिर जब भगवान उदासीन होता है तो सिर्फ तांडव होता है ......मौर का सैलाब आता है ........आप मानिये चाहे न मानिये ...................शुभ रात्रि
निशां की पीड़ा तुम क्या जानो ..........
निशां की पीड़ा तुम क्या जानो ..........
कालिमा कह उसको पहचानो ...............
सौन्दर्य बोध वो है उसका सच ...........
आलोक को दुश्मन उसका मानो............
कितनी आहत साँझ ढले वो ...........
जब उन्मुक्त नशीली होती है ...............
सूरज को है जीत कर आती ..............
दीपक से चीर तार तार होती है ............
निपट तमस आँखों के भीतर ..........
सुन्दर सपने रात से लाते है .............
कितनी किलकारियों के सृजन ........
ढलते पहरों की गोद में पाते है ..............
फिर क्यों जला उठते हो लट्टू .........
और रात का करते हो अपमान ..........
जी लेने दो चांदनी चकोर को ..............
रजनी का भी कुछ तो है मान ...................ये रात की विकलता है की जब वह अपने सौंदर्य बोध के साथ हमारे सामने आती है तो हम उसके प्रेम का अपमान करके बिजली जला देते है जबकि वो न जाने क्या क्या हमको दे जाती है .........तो रात को प्रेम से देखिये ............शुभ रात्रि
Sunday, June 18, 2023
मैंने भी लूटा है सांसों का मजा
मैंने भी लूटा है खर्च,
होने से पहले सांसो का मजा |
बेवजह दौड़ते पैरो को मिलेगी ,
कब की फ़िक्र कौन सी सजा |
कहते सभी थे रुक जाओ ,
ये उम्र सांसो की कमाई है |
नौ महीने की तपस्या से ये ,
इस दुनिया में आ पाई है |
पर लगा कि ये बकवास तो ,
सदियों से दुनिया ने गायी है ,
कितना थका कि आज मन ,
तन भी देखो उठा ही नहीं है ,
चार कंधो पर चला जा रहा जैसे ,
जीवन आलोक ने छुआ ही नहीं है ......................................जीवन को समझिये और इसको भी पैसे की तरह खर्च करिए वरना मिलकर भी मिटटी में मिल जायेगा..आपका आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन
Saturday, June 17, 2023
ना जाने लोग कैसे कैसे भ्रम पाल लेते है ,
ना जाने लोग कैसे कैसे
भ्रम पाल लेते है ,
कुत्ते की जगह अक्सर ,
आदमी पाल लेते है ,
धोखे खाने के लिए ही ,
रिश्ते जिए जाते है ,
बंद घर में भी जब तब ,
साँप चले आते है,
न चाह कर भी रोज ,
जानवर ही हम जीते है ,
कुछ जीवन कुतर देते है ,
कुछ कीचड़ छोड़ जाते है ...................
कभी आप को सिर्फ निखालिस आदमी मिला जो गंगा सा निर्मल हो ..........या फिर जानवर ----- डॉ आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन
Thursday, June 15, 2023
भारत मां की चिथडो में लिपटी
विकास का भारत ???????????????
सड़क के किनारे ,
भारत माँ चिथड़ो में लिपटी ,
इक्कीसवीं सदीं में ,
जा रहे देश को ,
दे रही चुनौती ,
खाने को न रोटी ,
पहनने को न धोती ,
है तो उसके हाथ में ,
कटोरा वहीं ,
जिसके आलोक में ,
झलकती है प्रगति की ,
पोथी सभी ,
किन्तु हर वर्ष होता है ,
ब्योरो का विकास ,
हमने इतनो को बांटी रोटी ,
और कितनो को आवास ,
लेकिन आज भी है उसे ,
अपने कटोरे से ही आस ,
जो शाम को जुटाएगा ,
एक सूखी रोटी और ,
तन को चिथड़ी धोती ,
पर लाल किले से आएगी ,
यही एक आवाज़ ,
हमने इस वर्ष किया ,
चाहुमुखीं विकास ,
हमने इस वर्ष किया ,
चाहुमुखीं विकास ............................ देश में फैली गरीबी के बीच न जने कितने कटोरे से ही अपना जीवन चला रहे है जब कि देश के नेता विकास का ढिंढोरा पीट रहे है .क्या आप को ऐसा भारत नही दिखाई दिया ...डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
Tuesday, June 13, 2023
कितनी सुबह कितनी बार आएगी द्वारा आलोक चांटिया
कितनी सुबह कितनी बार आएगी ,
और तुमको सोते से जगा पायेगी ,
पश्चिम को कोसना छोड़ दे आलोक ,
जिन्दगी आदमी फिर बन न पाएगी ...................... हम जो भी कर रहे है उसमे रोज यह सोचिये कि खाना , कपडा , प्रजनन , और आवास कि व्यवस्था ( जानवर भी करते है ) के अलावा दूसरो के लिए हम कितना जी पा रहे है ( जानवर दूसरो के लिए नही जीते है और अपने सामने शेर को शिकार करता देखते है पर खुद को बचाने में लगे रहते है ) यही अधिकारों कि रक्षा का मूल मन्त्र है ....सुप्रभात , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
अंतस में तमाशा कविता द्वारा आलोक चांटिया
अंतस के तमस में ही दिल चल पाता है ,
गर्भ के अंधकार से जन्म कोई पाता है
नींद भी आती स्वप्न भी आते रातो में ,
कालिमा से निकल सूर्य पूरब में आता है ............................
अंधकार हमारा स्वाभाव है और प्रकाश हमारा प्रयास ....कोई भी दीपक अँधेरा नही फैलाता पर दीपक के बुझते ही अँधेरा खुद फ़ैल जाता है ..अणि हमको अच्छे समाज से लिए निर्माण करना है क्यों की गलत समाज तो हमेशा से ही है .................... अखिल भारतीय अधिकार संगठन
तुम जानते नहीं कितने दिलों में बस रहे हो
तुम जानते नहीं कितने दिलो में बस रहे हो ................
क्यों मेरी बेबसी पर आज हस रहे हो ............
माना की अब ईद के चाँद से भी नहीं ...........
पर ख़ुशी है उस के पास ही जा रहे हो ...............
आज फिर याद आई तेरी हर वो बाते ..................
जब इस दिनिया से ही चले जा रहे हो ..........
एक बार तो खबर मेरी भी लेना तुम वहा...........
और पूछना कि तुम यहाँ कब आ रहे हो ..........
तुम तो भ्रष्टाचार से उब जल्दी चल दिए ...............
और मुझे इसी दलदल में छोड़े जा रहे हो .................
ले लो मेरा सलाम आज मेरे कंधो पर ...........
खुद चुप होकर आंसू दिए जा रहे हो ................
अब कौन पुकारेगा मुझे डॉ साहेब सुनिए ................
मेरी आवाज तो खुद लेकर जा रहे हो .................................अपने प्रिय श्री जे पी सिंह के आकस्मिक निधन पर एक अनशनकारी और उनके अनुज के श्रधांजलि के दो शब्द ............................
जब पत्थर से बन जाओगे
जब पत्थर से बन जाओगे ............
भगवान तभी तुम पाओगे .............
गडों जमीं में या जलो चिता में .............
जन्नत , स्वर्ग तभी ही पाओगे ...........
जितनी गर्मी जीवन में पाई ...........
उससे कम अंत में न तुम पाओगे .........
आखिर मिलना भी है तो किससे...............
ईश्वर, अल्लाह गॉड जब गुनगुनाओगे ..............
सब रोयेंगे ले मलिन से चेहरे ............
परम तत्व से मिल तुम शांत हो जाओगे ................
छोड़ तुम्हे सब लौटेंगे घर जब ...........
खुद को अकेला नहीं तुम पाओगे ...................
शमशान तो कहती दुनिया है इसको ....................
यात्रा के अगले पथ तुम यही पाओगे ...............
कोई क्या जाने अब कहा गए तुम ...............
घर में मूरत सी बन जाओगे ...............
कर्मो के निशान पर चल कर ...............
लोगो में भगवान कभी कहलाओगे ................शमशान पर श्री जे पी सिंह के पञ्च तत्व में विलीन होते समय जो भाव आ रहे थे उनको आजेब तरह से उकेरा है क्योकि शमशान ही इस दुनिया से पूरी तरह जाने का रास्ता है .............क्या आप सहमत है .......शुभ रात्रि
मैं जानता हूं फितरत कविता द्वारा आलोक चांटिया
मैं जानता हूँ फितरत
क्या है मेरी खातिर ,
हम उम्र भर जिंदगी ,
के लिए वफ़ा करते है ,
और फिर मौत के लिए ,
मर लिया करते है ,
फिर तुम क्यों मारते हो ,
खंजर पीठ मेरे पीछे ,
दिल में आकर रह लो ,
धड़कन के पीछे पीछे ,
तुम्हे एतबार नहीं है ,
खुद अपने पैतरे पर ,
हस कर जो मुझसे मिलते ,
राज करते दिल पर ,
मैं जानता था फितरत ,
तेरी लूटने की कबसे ,
ये जिंदगी भी रहती ,
ये लाश कहती है तुझसे .....................
धोखा मत दीजिये क्योकि जीवन अनमोल है किसी को मार कर आप सिर्फ अपने जानवर होने का सबूत देते है
Monday, June 12, 2023
जिंदगी तलाश रहा हूं कविता द्वारा आलोक चांटिया
जिंदगी तलाश रहा हूँ ,
तेरे पास आ रहा हूँ ,
कितना सफर है लम्बा ,
न जान पा रहा हूँ ,
कभी धूप की है गर्मी ,
कभी धूप है सुहाती ,
कभी खुद में सिमट कर ,
कभी खुद से बिखर कर ,
बस दौड़ा जा रहा हूँ ,
कभी पास तू है लगती ,
कभी दूर तक न दिखती ,
हर रात रहती आशा ,
साँसों की बन परिभाषा ,
जब खुल कर गगन में ,
उड़ कर जा रहा हूँ ,
तू चील की नजरों से ,
मुझे खोजे जा रही है ,
ये मिलन अधूरा कैसा,
ये सफर कुछ है ऐसा ,
कितना तड़पी जिंदगी है ,
मौत ये कैसी बंदगी है ,
सब जीते आलोक में है ,
अब अँधेरे के लोक में है ,
अब घोसला है खाली,
ये दोनों का मिलन है ,
है जिंदगी एक धोखा ,
ये मौत का जतन है .............
जिंदगी किसी की नहीं पर हम उसे न जाने कितने जतन से जीते है अगर मौत का एहसास कर ले तो कोई क्यों लालच करें ................,
,डॉ आलोक चांटिया
Sunday, June 11, 2023
जो आपने बही कुछ बातें कहीं
ये दैनिक जागरण समाचार पत्र में प्रकाशित हुई है
जो आँखे बही ,
कुछ बाते कही ,
मौन के शब्द ,
है दिल स्तब्ध ,
नीरवता की लय ,
ये कैसी पराजय ,
मन है अशांत ,
जैसे गहरा प्रशांत
हिमालय से ऊचे ,
जमीन के नीचे ,
तड़प है ये कैसी ,
अँधेरे के जैसी ,
समुद्र सिमट आया ,
पा आँख का साया ,
थे बादल से सपने ,
हुए ना आज अपने ,
बरसे तो खूब बरसे ,
सन्नाटो के डर से ,
क्यों अकेली आत्मा ,
पूछती परमात्मा ,
कसूर क्या है मेरा ,
चाहा सच का बसेरा ,
रावणो की लंका ,
क्यों न हो आशंका ,
तार तार है सीता ,
है मन भी आज रीता ,
जब मिला न सहारा ,
तो सब कुछ था हारा,
ज्वार भाटा सा आया ,
जब आँखों का साथ पाया ,
सच निकल पड़ा बूंदबन कर ,
दुनिया के सामने तन कर ,
रोया जब झूठ ही पाया ,
आँखों के हिस्से क्या आया ,
खारा पानी , दर्द ,खुली पलके ,
क्या पाया जिंदगी यूँ जलके ................
जिंदगी में सब सच सामने आता है तो आंसू काफी काम आते है पर आंसू को खुद क्या मिलता है
डॉ आलोक चांटिया
,
Saturday, June 10, 2023
मेरे दर्द , पर जब , कोई मुस्कराता है ,
मेरे दर्द ,
पर जब ,
कोई मुस्कराता है ,
शायद उसके ,
अंतस का आदमी ,
तभी जी पाता है |
मेरे अँधेरे पर ,
जलता दीपक ,
उनके घर में एक ,
सुकून दे जाता है |
ना जाने कैसी ,
फितरत पाल ली ,
आलोक दुनिया में ,
कोई क्यों आता है ?
जीते है जिसके साथ ,
वही आस्तीन ,
का सांप निकलेगा ,
कौन जान पाता है ................................
हम अब इतना समय पा ही नहीं पा रहे कि किसी को समझ सके
आलोक चांटिया
मौत का जतन है .............
जिंदगी तलाश रहा हूँ ,
तेरे पास आ रहा हूँ ,
कितना सफर है लम्बा ,
न जान पा रहा हूँ ,
कभी धूप की है गर्मी ,
कभी धूप है सुहाती ,
कभी खुद में सिमट कर ,
कभी खुद से बिखर कर ,
बस दौड़ा जा रहा हूँ ,
कभी पास तू है लगती ,
कभी दूर तक न दिखती ,
हर रात रहती आशा ,
साँसों की बन परिभाषा ,
जब खुल कर गगन में ,
उड़ कर जा रहा हूँ ,
तू चील की नजरों से ,
मुझे खोजे जा रही है ,
ये मिलन अधूरा कैसा,
ये सफर कुछ है ऐसा ,
कितना तड़पी जिंदगी है ,
मौत ये कैसी बंदगी है ,
सब जीते आलोक में है ,
अब अँधेरे के लोक में है ,
अब घोसला है खाली,
ये दोनों का मिलन है ,
है जिंदगी एक धोखा ,
ये मौत का जतन है .............
जिंदगी किसी की नहीं पर हम उसे न जाने कितने जतन से जीते है अगर मौत का एहसास कर ले तो कोई क्यों लालच करें ................,
,
Friday, June 9, 2023
पैसा ही सब कुछ है
कमरो में पैसो से ,
ठंढी हवा आज पैसे से ,
मिलती है ,
पर झोपडी में किलकारी ,
गर्म हवाओ में ,
झुलसती है ,
सुना तुमने भी है ,
पैसा बहुत कुछ है पर ,
सब कुछ नहीं
भूखे को रोटी मिलती ,
नंगो को कपडा ,
पर सांस तो नहीं ,
गर्मी में जी कर लोग
स्वर्ग नरक का अर्थ ,
जान रहे है ,
नंगे पैरो से सड़क पर ,
दौड़ते जीवन इसे ,
नसीब मान रहे है ,
अपनी सूखी, झूठी रोटी ,
देकर पुण्य का अर्थ ,
पा रहे है लोग ,
पानी को तरसते ओठ ,
गरीबी और पानी का ,
क्या सिर्फ संजोग
मानिये न मानिये आलोक ,
हवा पानी रौशनी ,
पैसे के सब गुलाम है ,
भूख , प्यास , गर्मी से ,
बिलबिलाते कीड़े से ,
आदमी गरीबी के नाम है ...........................सोचिये और अपने सुख से थोड़ा सुख उन्हें भी दीजिये जो आपकी ही तरह इस दुनिया में मनुष्य बन कर आये है और आप उनको ?????? आलोक चाटिया
हिमालय से निकली गंगा सी जिन्दगी ............
हिमालय से निकली गंगा सी जिन्दगी ............
शहर से गुजरेगी मैली सी जिन्दगी ...........
कितने भी जतन खेलेंगे सब जिन्दगी ...........
खुद को पाक कर बनायेंगे कोठे सी जिन्दगी .........
हर छूने वालो में अपने को तलाशती जिन्दगी ....
जिन्दगी में खुद से दूर जाती जिन्दगी ...........
मिठास की तलाश में घर छोड़ आई जिन्दगी .........
खुद की लाश को बाचती अब जिन्दगी ............
थक हार के जिन बाहों में समायी जिन्दगी ........
खारी ही सही दागो संग समाती जिन्दगी ........
गंगा से गंगा सागर बनी क्या पाई ये जिन्दगी ............
खुद के मन से ना निकल पड़ना ये जिन्दगी .........
तुझसे अपने पापो को धोने देखो खड़ी हैं जिन्दगी .........................शुभ रात्रि
Thursday, June 8, 2023
और सांसों का अवशेष था
मेरे पास खोने के लिए ,
इतना कुछ था कि,
लोग आते गए ,
और लेकर चलते गए ,
पर कोई न देख पाया ,
न समझ ही पाया ,
कि इन सब के बीच ,
मैं अब भी शेष था ,
शायद ये मेरी हिम्मत ,
और सांसो का अवशेष था .............................
आप किसी को लूट कर खुश हो सकता है बर्बाद करके खुश हो सकते है लेकिन कटे पेड़ की जड़ से फिर पत्तियां निकल आती है और फिर वो रौशनी और हवा पाती है हा ये बात और है कि फिर से दरख्त बनने में समय लगता है
डॉ आलोक चान्टिया
Wednesday, June 7, 2023
पेट की आग में हर शर्म जल कर राख हुई
पेट की आग में हर शर्म जल कर राख हुई ,
घूँघट के अंधेरो में फिर आज बरसात हुई ,
गूंगो की बस्ती में घुंघरू बस बजते ही रहे ,
दर्द से सड़क पर मुलाकात अकस्मात् हुई .................
एक ऐसी लड़की जिस से आज मै ऐसी जगह मिला झा सोचा ना था और अपने अधिकारों से दरकती भारत माँ की भारत पुत्री भारत पुत्रो से तार तार हुई ....क्यों न ऐसे देश पर फक्र जहा घुंघरू की गूंज आज भी है .............जय भारत पाने गरिमा को जानिए ..........डॉ आलोक चान्टिया
मुझ में अकेलेपन का एहसास रहने लगा
मुझमे अकेलेपन का एहसास रहने लगा .......
सच ये है कि अब साथ कोई रहने लगा ............
माना कि आलोक अंधेरो में नहीं आता ......................
पर एक साया रोज कुछ कहने लगा ................
यूँ ही जिन्दगी में कब तक उकेरोगे मुझको ..............
कोई तो तेरी जुदाई का दर्द सहने लगा ................
इस दुनिया को मिटटी का खिलौना समझो ..................
साँसों से कोई बदन मुझे जिन्दा कहने लगा ...............
आज बारिश से सुकून पाया कुछ दिल है ......................
तेरे संग भीगने का सगल होने लगा ...............
कौन कहता है भिगोती नहीं आँखे ......................
मेरे दिल से होकर जब वो गुजरने लगा ...........
मुझमे अकेलेपन का एहसास होने लगा ...............
सच ये है कि अब साथ कोई रहने लगा .............................
कैसे कह दूं सुबह मुझे मयस्सर ना हुई
कैसे कह दूँ सुबह मुझे मयस्सर ना हुई ,
कई कह दूँ पूरब आफ़ताब की ना हुई ,
पर ना जाने क्यों मन में बादल छाये ,
रौशनी तो दिखी पर कही रौशनी ना हुई l
आलोक चांटिया
Sunday, June 4, 2023
दरख्तों के आस पास आँचल का एहसास है ,
दरख्तों के आस पास आँचल का एहसास है ,
जमीं में उलझी शबनम में ओठो की प्यास है ,
कोई बढ़कर हवाओ की तरह ही लिपट जाये ,
आफताब से प्यार में जैसे बादल के जज्बात है .........................
हर विपरीत परिस्थिति में जीवन से मोह्हबत करना आना चाहिए वरना बादल की क्या मजाल कि वो अपने प्रेम की बहो में सूरज को समेटने की गुस्ताखी करे | यही है आपके अधिकारों के जागने का मन्त्र , अखिल भारतीय अधिकार संगठन .........सुप्रभात
पर्यावरण की दशा
मुझे काट कर दरवाजो में महफूज होते रहे ,
मेरी ही छावं में लेट सुकून से तुम सोते रहे ,
जला कर मुझे खुद को रोज जिन्दा रखते हो ,
जान न पाए दरख्त बिन कितने तन्हा होते रहे ................
आप अपने पुरे जीवन में उतनी आक्सीजन का प्रयोग करते है जितनी दो पेड़ अपने पूरे जीवन में निकालते है तो क्यों नही इस सबसे आसान से ऋण को पृथ्वी पर जिन्दा रहते हुए ही उतार दीजिये और अपने आस पास दो पेड़ लगा दीजिये ....अखिल भारतीय अधिकार संगठन विश्व पर्यावरण दिवस पर आप से बस यही जाग्रति की उम्मीद करता है