खुद को गिरा कर मुझे गिरा दिया उसने ......... न जाने मैखाने में क्या आकर
पाया उसने ....................सुना है अब उसके आंसू घुंघरू बन बजते है
........................ उजाला नही अँधेरे को बनाया आशियाना उसने
..............मुझे बर्बाद करने में खुद बर्बाद होते रहे
.................खुद की जिन्दगी से वो बेजार होते रहे .............आलोक
को क्या कोई पकड़ पाया मुठ्ठी में ................अँधेरे ही अक्सर उनके
दामन में सोते रहे ......................क्यों चाहते है की हम एक दूसरे को
गिरा कर आगे बढे पर ऐसे करके बढ़ने वाले कभी खुद भी हस नही
पाते..................
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