Monday, November 11, 2019

जिन्दगी आज बेकार सी लगने लगी है

जिन्दगी आज बेकार सी लगने लगी है ,
बाज़ार में बोली बेहिसाब लगने लगी है ,
कितनी बार बदल कर देखूं मैं तुझको ,
हर जिन्दगी में वही फिर दिखने लगी है ,
लोग कहते है आलोक होकर अँधेरे में ,
किसको बताऊँ आंखे छलकने लगी है ,
जन कर भी अन्जान नही मैं हुआ हूँ ,
अन्जाने में मौत अच्छी लगने लगी है ,
कोई नही जो ऋतु से यहाँ बच पाया हो ,
मेहँदी से सरुर में खुद न रच आया हो ,
उसका तो काम था आना और चले जाना,
दीवाली में दीपक सी आज लगने लगी है ..

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