निपट अकेला दीपक सा मैं ,
घर घर भटका करता हूँ ,
लोगो को रोशन करके मैं ,
तमस समेटा करता हूँ ,
लगता मुझको ख़ुशी दे रहा ,
पल पल घटता रहता हूँ ,
सूरज के आगे विवश खड़ा ,
पूरा दिन मैं मरता हूँ ..............दीपक की गति इतनी सरल नही हैं , वो हमारे लिए जी कर खुद को बर्बाद कर लेता हैं .....शायद इसी लिए कोई किसी के लिए या समज के लिए जीना कम पसंद करता है ......क्या आपको दीपक वास्तव में पसंद हैं
घर घर भटका करता हूँ ,
लोगो को रोशन करके मैं ,
तमस समेटा करता हूँ ,
लगता मुझको ख़ुशी दे रहा ,
पल पल घटता रहता हूँ ,
सूरज के आगे विवश खड़ा ,
पूरा दिन मैं मरता हूँ ..............दीपक की गति इतनी सरल नही हैं , वो हमारे लिए जी कर खुद को बर्बाद कर लेता हैं .....शायद इसी लिए कोई किसी के लिए या समज के लिए जीना कम पसंद करता है ......क्या आपको दीपक वास्तव में पसंद हैं
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