अकेला नही मैं सहारे बहुत है ,
तुम अपना भी सर धर लो ,
मरा समझ कंधे चार मिलते हैं ,
जिन्दा से तुम तौबा अब कर लो ,-------१
आलोक ढूंढने सब हैं आये ,
अंधेरों में भी बसेरा कर लो ,
डूबता को तिनके का सहारा ,
कुछ कदम साथ तुम चल लो -----------२
हम सब लाभ हानि के नज़र से हर रिश्ते को देखते है जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए
आलोक चांटिया
तुम अपना भी सर धर लो ,
मरा समझ कंधे चार मिलते हैं ,
जिन्दा से तुम तौबा अब कर लो ,-------१
आलोक ढूंढने सब हैं आये ,
अंधेरों में भी बसेरा कर लो ,
डूबता को तिनके का सहारा ,
कुछ कदम साथ तुम चल लो -----------२
हम सब लाभ हानि के नज़र से हर रिश्ते को देखते है जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए
आलोक चांटिया
No comments:
Post a Comment