पौधे से न जाने कब ,
जिंदगी दरख्त बन गयी ,
किसी के लिए यह ,
ओस की बूंद सी रही ,
तो किसी के लिए ,
मदहोश सी मिलती रही
कोई आकर घोसला ,
अपना बना गया ,
कोई मिल कर ,
होसला ही बढ़ा गया ,
किसी को हंसी मिली ,
किसी की सांस खिली ,
कोई जिया ही देखकर ,
कोई आया दिल भेद कर ,
सभी में अपने लिए ,
तोड़ने , मोड़ने , छूने ,
छाया पाने की ललक दिखी ,
किसी ने फूल समझा ,
तो किसी ने कलम बना ,
अपनी ही कहानी लिखी ,
सभी को आलोक मिला ,
पर उसे रहा यही गिला ,
अँधेरे से सब डरते रहे ,
मौत से ही मरते रहे ,
कोई नहीं दिखा आलोक में ,
जोड़ी बनती है परलोक में ,
आलोक पूरा हुआ अँधेरे से ,
रात पूरी होगी सबेरे से ,
आइये चलते रहे दरख्त ,
बनने की इस कहानी में ,
फूल पत्ती शाखो से ,
महकते रहे जवानी में ......................अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप सभी को जिंदगी के मायने समझते हुए एक नए कल की शुभ कामनाये प्रेषित करता है ............
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