सूरज यह जानता है
हर समय तुम्हें तपती हुई
धूप अच्छी नहीं लगती
कम से कम तब तो
बिल्कुल नहीं जब अलसाई सी
आंखें सुबह हैं जगती
इसीलिए वह ठंडी बयार के साथ
अपनी सुर्ख लाल किरणों के साथ
तुम्हें जगाने चला आता है
उसके आलिंगन स्पर्श से
भला कौन हर तरह का
सुख नहीं पाता है
बाद में वही सूरज तपता भी है
जलाता भी है और पसीने का
एक समंदर भी बहता है
पर समय परिस्थिति के साथ
कैसे बदलते रहना है इसी का
संदेश तो वह हमारे साथ
हमारे सामने हर पल कहता है आलोक चांटिया
No comments:
Post a Comment