निकलकर अंधेरों से सुबह दस्तक तक दे रही है
ठंडी हवाओं से हर दिशा हर सांस खिल रही है
तुम भी उजालों में आज खोज लेना अपने रास्ते आलोक
डगर पर सूरज की किरणें तेरे साथ हो रही है
आलोक चांटिया
हवाओं का रुख कुछ इस तरह हो गया है
सूरज का रुख आलोक जिस तरह हो गया है
कभी तपिश तो कभी ठंड का एहसास करा जाती है
ताल्लुकात का असर अब सरेआम हो गया है
आलोक चांटिया
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