जब तुम अपने को
बिल्कुल अकेला कहते हो
सच मानो दुनिया में भगवान
नहीं है यह भी कहते हो
फिर क्यों जाते हो मंदिर मस्जिद
गिरजाघर गुरुद्वारा जब तुमको
खुद पर अपने चारों ओर
उसके होने का विश्वास ही नहीं है
वही चला रहा है इस चराचर
ब्रह्मांड को पर तुम मानते हो
वह कहीं नहीं है
तुम हर बार हर दिन हर पल
अपने को अकेला कहकर
यही बताते हो भगवान मानने का
तुम नाटक करते रहे हो
यही जताते हो वरना
कण-कण में भगवान है का
दर्शन लिए तुम मान जाते
रोशनी हवा और तुम्हारे
बंद कमरों के सन्नाटे में
वह तुम्हारे साथ ही रह रहा है
यह भी जान जाते
अब जब भी किसी को अपने को
अकेला कहते हुए पाना
तो मान लेना मंदिर जाकर भी
वह नास्तिक है उसने यह माना
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