हर कोई चाहता है,
सोने के बाद इस दुनिया की,
कोई बात याद ना रह जाए।
यहां तक की सपनों में भी,
कोई ना आए ।
ताकि वह एक बार फिर वह,
उस दुनिया से जुड़ जाए,
जिसे छोड़कर वह ,
इस दुनिया में आया है ।
और बता सके उस परम तत्व को,
कि अभी तक उसने यहां क्या पाया है?
सुकून की गहरी नींद की,
यह यात्रा ही सुबह का,
सार बताने के लिए फिर से,
सूरज के किरण की,
दस्तक दे जाती है ।
सांसों की यह कहानी ,।
किसी दूर गगन से आने के बाद,
बस ऐसे ही चलती जाती है।
समझना आसान नहीं है,
इस तिलिस्म को ,
किसी के लिए भी यहां पर,
जो समझ जाते हैं उनके लिए ही,
यह अपने सारे अर्थ बता जाती है ।
नींद एक बार जब ,
गहराई में डूब कर चली जाती है ,
तो शरीर तो यही छोड़ जाती है,
पर वह उस पिया से,
मिलकर चली आती है।
जिसे देख पाना आसान कहां है?
किसी के लिए,
समय ही कहां है जो कोई, उ
सके लिए जिए ।
पर रोज यह नींद की कहानी,
हमें यह बताती है ,
कि वह इस दुनिया में ,
उसी रास्ते से होकर आती है,
जहां से सांसों की यात्रा ,
इस पृथ्वी पर अपनी दस्तक दे जाती है ।
उपासना साधना तपस्या का,
यह मंत्र हमें वह रोज बताती है।
पर यह सुंदर बात हर व्यक्ति को,
कहां समझ में आती है?
आलोक चांटिया रजनीश

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