Sunday, October 19, 2025

दीपक कहता है आलोक चांटिया "रजनीश"



दीपक कहता है

सूरज का घमंड तोड़ने के लिए,

 मैं कभी नहीं जलता हूं।

 मुझे जलाकर तुम्हें खुशी मिलती है,

 इसलिए मैं जलता हूं ।

जानता हूं तुम स्वयं से,

 अंधेरा मिटाने की कोई, 

कोशिश नहीं करना चाहते हो।

 तुम सिर्फ उजाले के लिए, 

मेरे अंदर दुनिया भर का,

 अंधेरा समेटना चाहते हो ।

मैं भी जानता हूं कि तुम्हीं ने, 

अपने हाथों से कुम्हार बनकर,

 मेरी रचना को जन्म दिया है।

 तभी तो इस धरा पर ,

सभी ने मुझे दिया कहकर, 

उसका नाम लिया है।

 फिर कैसे अपने मालिक की इच्छा को,

 मैं महसूस ना कर पाऊं ?

ठीक है उजाला करने में मैं,

 कितना ही अंधेरा क्यों ना हो जाऊं ?

पर दर्द होता है जब तुम ,

झूठ बोलकर दुनिया से,

 यह रहते हो कि एक चिराग ,

 सूरज को रोशनी देने के लिए जलता है ।

कुछ घंटे के प्रकाश में ,

भला सूरज के बराबरी में,

 वह कहां मिलता है ?

लेकिन तुम्हें कभी भी, 

जिम्मेदारी लेने की ,

आदत नहीं रही है ।

कैसे कह दो चिराग के,

 सीने पर पैर रखकर तुमने,

 उजाले की कहानी कही है। 

फिर भी मैं चार दिवारी में,

 बंद औरत की तरह खुश हो जाता हूं।

 क्योंकि मैं भी तुम्हारे जीवन को एक,

 स्वर प्रदान करने के काम तो आता हूं ।

उजाले के इस जन्म लेने को, 

तुम बस याद करते रहना। 

अंधेरा मुझ में कितना छोड़ा,

 यह किसी से ना कहना। 

किसी से ना कहना ।

आलोक चांटिया "रजनीश"

 

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