आज एक दीपक,
मेरे लिए भी जलने जा रहा है ।
मेरे अंधेरे को,
अपने साथ ले जा रहा है।
कितनी खूबसूरती से,
इस झूठ को छिपा ले गया।
कि खुद के जीवन में ,
एक अंधेरा किया जा रहा है।
इतना आसान भी नहीं था,
दूसरे के जीवन में रोशनी को फैला देना ।
एक दीपक अपने भीतर,
अंधेरे को समेटे जा रहा था।
चाहते सभी हैं कोई दूसरा,
मेरे जिंदगी में उजाला कर जाए ।
उसके जीवन में कितना,
अंधेरा रह गया?
क्या कभी यह जान पाए?
आलोक चांटिया "रजनीश"

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