मिट्टी कब कहां यह देेखती है?
कि किस बीज को उसने,
अपने घर में जगह दे दिया है?
किसको उसने इस संसार में,
खिलने फैलने बढ़ाने का,
अवसर दे दिया है।
मिट्टी को कहां पता होता है,
कि किसी बीज से बाद में,
उसके चारों तरफ कांटे निकलेंगे ?
या फूल निकलेंगे फल निकलेगा?
या सब्जी होगी या सिर्फ,
पत्तियां ही पत्तियां होगी ?
मिट्टी तो बस सिर्फ और सिर्फ,
यह जानती है,
और कर्म के दायरे में,
यह मानती है,
कि उसे जो भी बीज,
प्रेम से मिल जाएगा।
उसी के लिए उसका हर,
कर्तव्य प्रयास हो जाएगा।
प्रेम का यही अनूठा दर्शन,
हर कहीं चल रहा है।
इसीलिए मिट्टी से,
हर कोई डर रहा है।
हर कोई घर में मिट्टी को ,
बंद करके रख लेना चाहता है।
अनेको घेरा बनाकर उसे,
रोक लेना चाहता है ।
क्योंकि मिट्टी को इस बात का,
कोई भी असर नहीं होता है।
कि जो भी उसे मिला है,
उससे खरपतवार पैदा होगा,
या एक सुंदर सा फूल निकल जाएगा ।
इसीलिए मिट्टी के जीवन में,
न जाने रोक-टोक के कितने अवसर,
समय के साथ आएगा ।
पर मिट्टी कभी भी इस,
दर्शन को लेकर कहां जी पाएगी?
बाद में क्या होगा?
वह कब इस बात से मतलब रखती है ?
वह तो सिर्फ उस एक,
बीज का इंतजार करती है।
जिसके लिए वह नमी के साथ,
हर पल संवरती है।
हर पल जगती है।
और प्रेम का सत्य,
सभी के सामने रखती है
आलोक चांटिया "रजनीश"

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