इस दुनिया में रिश्ते न जाने कितने,
बनते हैं बिगड़ते हैं।
पर जिस रिश्ते की उंगली पकडकर,
आप इस दुनिया में आते है।
हर दुख मुसीबत में उसको ,
अपने सामने पाते हैं ।
वह सिर्फ और सिर्फ एक पिता होता है ।
जो अपने बच्चों के लिए जीता है ।
अपने बच्चों के लिए रात दिन मेहनत करता है ।
और फिर एक दिन अपनी बगिया के,
फूल की तरह उन्हें समाज के लिए तैयार करता है।
पर बदले में उसको क्या मिलता है ?
एक अकेलापन एक सन्नाटा और,
इस बात का दर्द कि,
कोई भी अपने पिता के इस त्याग को ,
कहां समझ पाता है ?
जिसे भी देखिए,
यह कहते हुए मिल जाता है।
कि यह कौन सा बहुत बड़ा काम है?
सभी करते हैं और यह सुनकर ,
एक पिता मुस्कुरा कर रह जाता है।
क्योंकि वह फिर भी अपने ,
बच्चों के लिए जी जाता है।
वह इसी में खुश हो जाता है,
कि उसके परिवार का नाम चलता रहेगा ।
आने वाली पीढ़ी में कोई तो उसे ,
सपने में मिलता रहेगा।
पिता का दिल इतना बड़ा हो जाता है ।
जिसमें पूरा परिवार समा जाता है ।
इसीलिए पिता कभी-कभी ,
अपना जन्मदिन भी भूल जाता है ।
क्योंकि उसके हिस्से में जिम्मेदारियां का,
एक ऐसा बोझ आता है।
जिससे वह चाहकर भी,
कभी नहीं निकल पाता है।
सांसों के रथ पर बैठा हुआ ,
ना जाने कितनी दूर निकल जाता है ?
और जब रुकता है तो एक सन्नाटा,
अकेलापन बुढ़ापा और अपने पास ,
कोई न बैठने वाला वातावरण पाता है ।
फिर भी पिता पिता रह जाता है ।
क्योंकि वह हम सबको बनाता है ।
वह बच्चों के लिए ब्रह्मा ,
विष्णु महेश हो जाता है।
इसीलिए पिता समुद्र सा ,
गहरा बन जाता है।
कभी-कभी हिमालय से ऊंचा हो जाता है।
आकाश की तरह ,
अपनी बाहों को पसारकर,
पूरे परिवार की खुशी बन जाता है ।
वह सिर्फ पिता होता है जो अपने,
दर्द को समेट कर सिर्फ,
बच्चों के लिए जी जाता है।
आलोक चांटिया "रजनीश:

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