Friday, August 22, 2025

पिता हिमालय बन जाता है -आलोक चांटिया "रजनीश"


 इस दुनिया में रिश्ते न जाने कितने,

बनते हैं बिगड़ते हैं।

पर जिस रिश्ते की उंगली पकडकर,

आप इस दुनिया में आते है।

हर दुख मुसीबत में उसको ,

अपने सामने पाते हैं ।

वह सिर्फ और सिर्फ एक पिता होता है ।

जो अपने बच्चों के लिए जीता है ।

अपने बच्चों के लिए रात दिन मेहनत करता है ।

और फिर एक दिन अपनी बगिया के,

फूल की तरह उन्हें समाज के लिए तैयार करता है।

पर बदले में उसको क्या मिलता है ?

एक अकेलापन एक सन्नाटा और,

इस बात का दर्द कि,

कोई भी अपने पिता के इस त्याग को ,

कहां समझ पाता है ?

जिसे भी देखिए,

यह कहते हुए मिल जाता है।

कि यह कौन सा बहुत बड़ा काम है?

सभी करते हैं और यह सुनकर ,

एक पिता मुस्कुरा कर रह जाता है।

क्योंकि वह फिर भी अपने ,

बच्चों के लिए जी जाता है।

वह इसी में खुश हो जाता है,

कि उसके परिवार का नाम चलता रहेगा ।

आने वाली पीढ़ी में कोई तो उसे ,

सपने में मिलता रहेगा।

पिता का दिल इतना बड़ा हो जाता है ।

जिसमें पूरा परिवार समा जाता है ।

इसीलिए पिता कभी-कभी ,

अपना जन्मदिन भी भूल जाता है ।

क्योंकि उसके हिस्से में जिम्मेदारियां का,

एक ऐसा बोझ आता है। 

जिससे वह चाहकर भी, 

कभी नहीं निकल पाता है।

सांसों के रथ पर बैठा हुआ ,

ना जाने कितनी दूर निकल जाता है ?

और जब रुकता है तो एक सन्नाटा,

अकेलापन बुढ़ापा और अपने पास ,

कोई न बैठने वाला वातावरण पाता है ।

फिर भी पिता पिता रह जाता है ।

क्योंकि वह हम सबको बनाता है ।

वह बच्चों के लिए ब्रह्मा ,

विष्णु महेश हो जाता है। 

इसीलिए पिता समुद्र सा ,

गहरा बन जाता है। 

कभी-कभी हिमालय से ऊंचा हो जाता है।

आकाश की तरह ,

अपनी बाहों को पसारकर,

पूरे परिवार की खुशी बन जाता है ।

वह सिर्फ पिता होता है जो अपने,

दर्द को समेट कर सिर्फ, 

बच्चों के लिए जी जाता है।


आलोक चांटिया "रजनीश:


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