Tuesday, August 5, 2025

राम को कितना जानते हो? आलोक चांटिया "रजनीश"

 

राम को कितना जानते हो?
सोच कर देखो राम को कितना मानते हो?

 उन्होंने कब अपने किसी संघर्ष श्रम के लिए,

 अपना कर्म का पथ छोड़ा है?

सत्य के रास्तों को छोड़कर ,
अपने को कब कहां मोडा है?
चाहते तो दो पल में अपने पिता को,
जीवित कर सकते थे ,
अपनी मां को वैधव्य से रोक सकते थे,
पर मृत्यु लोक के नियमों से ,
उन्होंने अपने को दूर नहीं किया,
जो हो रहा था उसे स्वीकार कर लिया,
महलों में रहने का अवसर,
जब भी जब तक मिलता रहा,
जीवन इस सुख और वैभव में चलता रहा,
पर वह भी समय आया,
जब जंगलों की तरफ उन्हें जाना पड़ा,
कंदमूल फल खाकर झोपड़ी में रहकर,
जीवन बिताना पड़ा,
मर्यादा पुरुषोत्तम होकर सब कुछ,
चुटकी में अपने लिए कर सकते थे,
मां सीता का अपहरण भी हो जाने पर ,
उन्होंने कोई जादू से न जानने का प्रयास किया,
कि वह कौन है जिसने,
मेरी सीता का अपहरण किया,
मृत्यु लोक के सारी प्रक्रियाओं में,
उन्होंने पेड़ पौधे नर नारी वानर पक्षी,
सभी से यह जानने का प्रयास किया,
और फिर लंका की तरफ,
जाने का अभिप्राय किया,
चाहते तो चुटकी में मां सीता ,
उनके पास वापस आ सकती थी,
पर भला इससे पृथ्वी पर ,
श्रम और संघर्ष ही सत्य है ,
इसकी बात कैसे सच होकर आ सकती थी!

 सनातन होकर राम के अनुगामी होकर भी,
हम रात दिन अपने हर काम के लिए,
व्रत मनौती पूजा पाठ में उलझे रहते हैं।
भला अपने अंदर राम होने की बात,
कब किसी से कहते हैं?
राम को जब हम सब इस मृत्यु लोक में ,
जानने का प्रयास कर रहे हैं ,
तो फिर क्यों श्रम संघर्ष,
परेशानी से भाग रहे हैं?
राम का अर्थ ही कर्म की,
पूजा से होकर गुजर रहा है ,
पता नहीं मानव क्यों उसे ,
अब तदर्थ कर रहा है ,
उसे अब तदर्थ कर रहा है।
आलोक चांटिया "रजनीश"

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