Thursday, January 9, 2025

आदमी और चूहा -आलोक चांटिया


 आदमी पर भरोसा


कई बार कमरे में 

लड़ाई हो जाती है 

जब एक रोटी मेरे और 

चूहे के बीच में आती है 

चीख कर कहता है मुझे 

जब अपने कमरे में 

अतिथि बनाया है 

मेरे हिस्से की रोटी तो क्यों नहीं 

आज फिर लाया है

 मैं तो जानवर हूं 

मैं तेरे सहारे जी रहा हूं 

बता तो सही कि मैं 

भूखा क्यों रह रहा हूं 

तेरी कथनी करनी में इतना 

अंतर क्यों रहने लगा है 

मानव होकर भी तू यह 

क्या करने लगा है 

क्या इस लड़ाई का कभी 

कोई अंत हो पाएगा 

जब तेरे में हिस्से में 

रोटी गरिमा की और 

मेरे भी हिस्से में एक रोटी 

सम्मान की लायेगा 

यही लड़ाई करोड़ चूहे 

करोड़ घरों में लड़ रहे हैं 

सिर्फ एक रोटी कुतरने के कारण 

वह रोज मानव की दुनिया में 

सड़क चौराहों पर मर रहे हैं 

रोज सड़क चौराहों पर मर रहे हैं।

 आलोक चांटिया

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