Thursday, January 2, 2025

ठिठुरते भगवान -आलोक चांटिया


 ठिठुरते भगवान


आदिमानव कैसे रहा करते थे,

 यह जानने की ज्यादा ,

कोशिश ना किया कीजिए,

 थोड़ा सा सड़क पर,

मोजा स्वेटर मफलर  में,

 निकल कर देख लिया कीजिए,

 आधुनिक दुनिया में ,

वह समय जी भी लिया कीजिए,

 भगवान होते हैं कि नहीं होते हैं,

 यह सोचने का वक्त है किसके पास,

 नन्ही सूरत में उनकी,

 परछाई को बस देख लिया कीजिए, 

चाहते हैं समेंट कर वह भी,

 अपने अंदर दुनिया भर की,

 खुशी तो नहीं

  चंद टुकड़े ऊर्जा के बटोर लेना,

 जलते कागज के टुकड़ों में,

 प्रगति को  भी झांक लिया कीजिए, 

किससे कहें वह भी,

 इसी देश के कल है,

 क्योंकि जिधर भी देखते हैं,

 उधर हर कोई विकल है,

 बंद कमरों में हमको यह मालूम नहीं,

 चौराहों पर कौन कैसे जी जाएगा,

 यह बच्चे ही कल की अमानत है,

 एक बार कल की बात किसी ,

मोड़ पर कर लिया कीजिए,

 क्यों ढूंढते हो उनको तुम ,

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में ,

हर दिन हर कही कभी-कभी,

 इन ठिठुरते हुए भगवानों को ,

आलोक देख लिया कीजिए ।

आलोक चांटिया

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