Monday, December 30, 2013

एक बार सोच लो इस शाम में

जो भी पाया था ,
उसके जाने का ,
वक्त आ रहा है ,
संजो भी ना सका ,
अब तो लूटने का ,
मंजर आ रहा है ,
जिंदगी आलोक में है ,
रास्ते अंधेरो में ,
गुजर रहे है ,
साँसे तो चल रही है ,
खुद हर किसी में ,
मौत जी रहे है ,
ये कैसा सिला मिला ,
किसी से मिलने का ,
फिर बिछड़ने का ,
मौका भी मिला तो ,
चार कंधो पर ,
आज संवरने का ,
ये वर्ष जो जा रहा है ,
वो वर्ष जो आ रहा है ,
कोई मुझको पा रहा है ,
कोई मुझसे जा रहा है ,
जीना इसी का नाम है ,
चलना इसी का काम है ,
मुबारक हो साल अब ये ,
कल इसकी आखिरी शाम है ....................आइये सोचे कितने आजीब है हम जो यह नहीं समझ पाते कि हम सिर्फ किसी की तलाश में इस दुनिया में नहीं आये बल्कि दुनिया हमको तलाश रही है ......कुछ करने के लिए कुछ कहने के लिए ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, December 29, 2013

जिंदगी कल , आज और कल .नया वर्ष २०१४

पौधे से न जाने कब ,
जिंदगी दरख्त बन गयी ,
किसी के लिए यह ,
ओस कि बूंद सी रही ,
तो किसी के लिए ,
मदहोश सी मिलती  रही
कोई आकर घोसला ,
अपना बना गया ,
कोई मिल कर ,
होसला ही बढ़ा गया ,
किसी को हसी मिली ,
किसी कि सांस खिली ,
कोई जिया ही देखकर ,
कोई आया दिल भेद कर ,
सभी में अपने लिए ,
 तोड़ने , मोड़ने , छूने ,
छाया पाने की ललक दिखी ,
किसी ने फूल समझा ,
तो किसी ने कलम बना ,
अपनी ही इबारत लिखी ,
सभी को आलोक मिला ,
पर आलोक का गिला ,
अँधेरे से सब डरते रहे ,
मौत से ही मरते रहे ,
कोई नहीं दिखा आलोक में ,
जोड़ी बनती है परलोक में ,
आलोक पूरा हुआ अँधेरे से ,
रात पूरी होगी सबेरे से ,
आइये चलते रहे दरख्त ,
बनने की इस कहानी में ,
फूल पत्ती शाखो से ,
महकते रहे जवानी में ......................अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप सभी को जिंदगी के मायने समझते हुए एक नए कल की शुभ कामनाये प्रेषित करता है ............

Friday, December 27, 2013

क्या आये हो यहाँ ???

तुम समझ ही ना पाये ,
कि हम यहाँ क्यों आये ?
बस समझते रहे ,
सुबह से शाम तक ,
जिन्दा रहने को ,
आखिर किससे कहे ,
यूँ तो मानते हो ,
तुम कुछ अलग हो ,
उन सब से ज्यादा ही ,
पर वो भी भाग रहे ,
तुम भी भाग रहे ,
जानवरो से ज्यादा ही ,
क्या आलोक नहीं है ,
जिंदगी में तुम्हारी ,
पीछे क्या रह जायेगा ,
जिंदगी के बाद हमारी ..................अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Thursday, December 26, 2013

उम्र और मैं

मैं जिसको उस मोड़ पर ,
मानो ना मानो ,
छोड़ आया हूँ ,
और कुछ भी नहीं बस ,
वो मेरा कल जिसे ,
उम्र बना लाया हूँ |
लोग कहते है अब मुझे ,
कुछ बदल से गए हो ,
आलोक इस तरह ,
क्या कहूं उनसे भी ,
कुछ भी नहीं बदला ,
सिवा इस उम्र की तरह .............अखिल भारतीय अधिकार संगठन

उम्र और जवानी

जिस उम्र को लाद,
तू घूम रहा है ,
जिन साँसों को ले ,
तू झूम रहा है ,
पता नहीं कितनी ,
पुरानी हो चली है ,
फिर भी गूदरों में ,
तू जवानी ढूंढ रहा है ........अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से एक प्रयास

Friday, August 9, 2013

चींटी और हम

हमें बटोरने की आदत हो गयी है ........
चींटी जैसी सहादत हो गयी है ..........
मौत से भागते भागते आलोक ........
जिन्दगी कब की खो गयी है ...........डॉ आलोक चान्टिया ..............हो सकता है आपको मेरी बात सही न लगे पर जैसे चींटी बस कल की चिंता में हर समय बटोर करती है और उसको अपने कल या शाम को घर लौटने तक का इल्म नहीं होता .....वैसे ही कुछ मनुष्य हो गया है .........शुभ रात्रि

Tuesday, July 30, 2013

दिल सहने लगा है

जो मेरे जख्म में रहने लगा है ..........
वही उसको नासूर कहने लगा है .......
मेरा खून पीकर भी मेरा ना हुआ ......
मेरे दिल तू ये क्या सहने लगा है ........शायद ही मैं किसी को यह समझा पाऊ कि उन बच्चो को क्या कहा जाये जो अपने माँ बाप के खून से तैयार होकर भी उनके लिए नहीं जीते .........पत्नी का सिंदूर भी पति को बांध नहीं पता और ये सब एक कीड़े कि तरह घाव में रहने लगते है .........और इस तरह के लोगो को सहते हुए जिन्दगी गुजर दी जाये ...इस के अलावा कुछ भी नहीं रह जाता है हाथ में ...शुभ रात्रि

Tuesday, July 23, 2013

क्यों डरते हो उजाले से

रात फिर मुझे अकेला कर रही है ..........
दुनिया में ही सब से दूर कर रही है .......
सामने होकर भी सबसे दूर हो रहे .....
नींद  इस कदर मजबूर कर रही है ........
कितने विश्वास से आँख बंद हो रही ......
कल खुलेंगी इसी  लिए सो रही है .......
मिलेंगे कितने खुली आँखों से फिर ....
रिस्क को लेकर खुद से  खो रही है .....
जब सपनो का सफ़र अकेले चले हो ........
फिर किसी की इच्छा क्यों हो रही है ........
जब काट देते हो कालिमा इस तरह से ...
उजाले से क्यों फिर घबराहट हो रही है.... जब हम सब रात के अँधेरे को अकेले सोकर काटने का सहस रखते है तो फिर दुइअ के उजाले में आने वाले किसी भी स्थिति को देख कर भाग क्यों पड़ते है .....मुकबला करिए ..हम मनुष्य है .....शुभ रात्रि 

Saturday, July 20, 2013

तिमिर में जीवन बनता है

भोर तिमिर की आशा से ही आता है ......
किलकारी गर्भ का तम हमे सुनाता है .....
पश्चिम में डूबा सूरज पूरब की खातिर ....
तारों को तब  जीवन जीना आता है
जीवन के अंदर धुन मौत की बजती है .....
आंसू में सूरत किसी की ही सजती है  ......
जब भी न रहे आलोक जीवन में तेरे  ......
मान लेना अंधेरो में जिन्दगी बनती है ......... जीवन में आअने वाले हर विपरीत परिश्थिति को अगर आप अपनी तरह नहो मोड़ पा रहे है तो आप को अभी मानव बनने में और समय चाहिए .................मुकाबला करना ही मानव की फितरत है .शुभ रात्रि


Friday, July 19, 2013

काँटों को मैंने देख देख..........,
फूल सा जीवन सीख लिया ........
बिना सरसता रेत से मैंने .....
एक घर बनाना सीख लिया .......
तपते जीवन को सूरज सा पा.......
दुनिया को चमकाना सीख लिया .....
क्यों डरते हो कमी से आलोक ........
अँधेरे में जुगुनू बनाना सीख लिया .................आपकी कोई भी कमी आपको एक बेहतरीन जीवन का मर्म दे सकती है अपनी कमी को जान कर काँटों के बीच गुलाब  का जीवन जीना  सीखिए .....शुभ रात्रि

Thursday, July 18, 2013

काँटों से प्यार रहा है मुझको

जिन राहों पर फूल बिछे हो ......
उन राहों का मैं क्या करूँ ..............
काँटों पर चल कर ना पाऊं .........
वो प्रगति का मैं क्या करूँ ........
बूंद बूंद कर खुशियों को मांगू........
हो सागर तो मैं क्या करूँ ................
मुट्ठी में गर बंद आलोक हो ........
ऐसे अंधेरो का मैं क्या करूँ ............मुझको मालूम है कि एक अच्छे काम करने के लिए कितने संघर्ष करने पड़ते है दुनिया को किलकारी देने वाली माँ ही जानती है कि उसने एक शरीर को बनाने  में कितने दर्द और अपना खून मांस  लगाया है ..........शुभ रात्रि

Wednesday, July 17, 2013

आँखों की बेवफाई

जो भी देखा आँखों से देखा .....
ये किसको सच तुम मान रहे ........
आकाश का रंग काला ही होता ....
पर उसको भी नीला मान रहे ......
आँखों का क्या जब रेत को देखे ...........
पानी का भ्रम पैदा कर देती है  ............
तड़प तड़प कर पथिक है मरता .....
रेगिस्तान भेज जब देती है .........
आँख की भाषा पड़कर जब ....
प्रेम किसी को लगता है ......
सूनी आँखों में विरह था वो .....
जो राधा को विकल करता है .....
आज फिर न कर लो आलोक ........
विश्वास इन बेवफा आँखों पर ........
देश नहीं हाहाकार  बढ रहा ........
प्रगति विनाश की राखो पर ....................आँखों से नहीं बल्कि सच को खुद जानने की कोशिश करिए ताकि देश को सही हाथो में देकर हम अपने कल को खुद सुनिश्चित कर सके ..........शुभ रात्रि



Tuesday, July 16, 2013

सब कुछ खर्च हो रहा है

दिल खर्च हो रहा है ....
दिमाग खर्च हो रहा है ..........
उम्र भी खर्च हो रही है .......
सांस भी खर्च हो रही है .....
कहा तक बताऊ किसी को .....
सब कुछ खर्च हो रहा है ..........
कंगाल होते जिस्म को ......
भला कौन सोच रहा है ............
कोई हमको नोच रहा है ....
कोई तुमको नोच रहा है .....
कोई कल की सोच रहा है .........
कोई आज को सोच रहा है ......
खर्च हो चुके कितना हम .....
आलोक कितना सोच रहा है ............हम अपने पैसे , माकन , धन के बारे में तो रात दिन चिंतन करते है ...पर शरीर को न जाने कौन सा कुबेर का खजाना समझते है कि इसके लिए सोचते ही नहीं और न जाने कितने अपने सपनो को कंगाल बना कर रुखसत हो जाते है ................शुभ रात्रि

Wednesday, June 26, 2013

माँ का दर्द जान लो



जैसे जैसे जनसँख्या बढती गयी .....................
जिन्दगी अपनों से खुद सिमटती गयी .................
माँ ने जब सोचा बच्चे कितने जने...................
भला कोई बेटा क्योंफिर  उसका बने ..................
कहा हो भी  जिसने वही माँ भी माने ..................
हम तो बस खुद का परिवार ही जाने....................
लूट ले कोई माँ की अस्मत तो क्या ..................
कटाए सर वही जिसको आये ह्या .........................
माँ से तो मतलब पिता का है रहता ..............
बता दे कोई क्या हिमालय है कहता ...................
खून के आंसू लेकर  रोया अभी है .........................
हजारो को सुलाया गोद में अभी है ....................
माँ को समझो अगर अभी तुम सब ....................
खत्म हो जाये एक बार में हम सब .................................... इस देश की अस्मिता को अगर हम लोगो ने नहीं समझा तो वो दिन दूर नहीं जब भारतीयों नहीं मानव बीज का यह देश सड़ जायेगा ....................और हमारा नामो निशान नहीं होगा ................................शुभ रात्रि



Tuesday, June 25, 2013

भूलने की बीमारी से बेहतर क्या ??????????????

कुछ भी भूल जाने की बीमारी ....................
इस देश की है देखो  महामारी ..................
क्या लाये थे क्या ले जायेंगे ............................
न संग आये थे न संग जायेंगे ..................
फिर कौन पड़े इन झमेले में ......................
मरते तो रोज दुनिया के मेले में ............
नेता जनता की बीमारी जब से जाने ..................
हर गलत काम किया माने न माने....................
बलात्कार ,भर्ष्टाचार ,सूखा,और भूखा .................
किसके लिए आवाज नहीं आई .....................
पर दूसरे दिन सो कर जब जागे  ...............
बीमारी ने अपनी अलख जगाई ................
हर कोई फिर रोटी को ही भागे ..................
किसी ने पूछ लिया आन्दोलन ......................
तो बोले हम है भारत के अभागे .....................
अच्छा चलता हूँ सब्जी लेनी है ..............
जिसने जो किया सबको यही देनी है ...............
तभी किसी  ने की केदारनाथ की बात .....................
बोले चलो ये मुद्दा कल ही उठाते है ....................
आखिर अपने ही देश के लोग मरे है ......................
सरकार से कुछ तो अच्छा करवाते है ......................
तभी एक फ़ोन आ जाता है और  ..................
वो बीमारी में फिर सब भूल जाता है ...............................
सब दुखो में यही सर्वोत्तम पाता है ......................
देश में प्रजातंत्र इसीलिए अभी चल रहा .....................
तभी एक डाकू नेता बन संसद में  आता है ..............................   क्या यह सही नहीं है कि हमें अंग्रेजो ने बाटो और राज करो में उलजह्या पर क्या आज भी हम रोजी रोटी के कारण अपने देश के हर संकट को सिर्फ दो दिन याद रखते है और भूल जाते है .....................शुभ रात्रि




Monday, June 24, 2013

मरना ही बेहतर है यहाँ

क्यों कहे कि हम जिन्दा है जब ...............
मरने वालो को ही पैसा मिलता है ..................
जब कोई गरीब मरता है यहाँ ..................
तो पुरे परिवार का चेहरा खिलता है ...................
कल भी खबर आई भैया के मरने की................
माँ भी रोई बप्पा भी रोये कहकर ...............
देखो मुन्ना हमको रोटी दे गया ................
जो न कर पाया था जिन्दा रहकर .....................ये एक सच्ची घटना है जो देश की तस्वीर दिखाती है ....................पूरा घर दुखी है मुन्ना के उत्तराखंड में मर जाने पर शुकून भी है कि जिस देश में जिन्दा रहकर एक रोटी मिलना मुश्किल थी वह मरने पर सरकार अपनी दरिया दिली और मानवता के लबादे को ओढ़ कर कुछ जीने का सहारा तो दे देती है ...........................जागो भारत जागो ..................शुभ रात्रि

Sunday, June 23, 2013

आदमी के इये कौन रोयेगा

आदमी के बीच में आदमी ..............,
खुद को अब अकेला पाता है .............
दर्द किसी को भी हो तो ....................
कौन दौड़ कर अब आता है ................
सड़क पर कुत्ता रुक जाता है ............
वह अपने को जब मरा पाता है ...............
बैठता है रोता है रात भर .................
बिना कुछ खाए पिए उदास ...............
कई और आ जाते है पास ..................
क्योकि वो जानते है आदमी ...............
नहीं आज कुत्ता कुचला है यहाँ .................
वरना आदमी मर जाते है ..............
और आदमी के पास वक्त कहा ............
रोज की तरह खाते है पीकर ...................
कहते है जो मरे क्या मिला जीकर ...........
क्या जरूरत थी कही जाने की ..............
जरूरत रही होगी मोक्ष पाने की ...............
बेवजह सुबह से शाम तक बस .....................
मरने मरने की खबर हर कही ................
क्या हम पैदा दुःख मनाने को कही ................
देखो आज मैच आ रहा होगा .................
जिसने जो किया वो भोगा......................
तभी कुत्ते फिर थे रोये कही .................
बाहर देखो कोई कुत्ता मारा होगा .................
अब साले रात भर मातम मनाएंगे .................
औ हम मानव की नींद खा जायेंगे ....................
ये साली सरकार क्या कर रही है ..................
मरने वालो को कितना दे रही है .................
काश कोई अपना उत्तराखंड जाता ...............
मरने वालो के पैसे ही ले आता ................
साले ये सरकारी लोग खा जायेंगे ...............
हम तो बस दर्द ढ़ोते रह जायेंगे ...................
कितनी फुर्सत है लोगो के पास ....................
जाने वालो पर समय बर्बाद करते है ...................
अरे  जो आया है वो जायेगा ही .......................
हम क्यों अपनी नींद ख़राब करते है ...................
वैसे भी साले कुत्ते गाना गायेंगे ही ........................
अपने किसी मरने वाले का सिजरा........................
मुहल्ले वाले को सुनायेंगे ही ............................ आप लोग मेरी लाइन्स पर बुरा मत मानियेगा पर ये सच है की अगर कोई मानव हमारा सगा सम्बन्धी अहि है तो हमको कोई दर्द होता ही नहीं है मानो सबको गीता का ज्ञान हो चुका है.....................पर क्या कुत्ता अभी भी संवेदनशील है ....................फिर जो उत्तराखंड में लोग दिवंगत हुए उनको श्रधांजलि कौन देगा मानव या ....................शुभ रात्रि






Saturday, June 22, 2013

भगवन मानव नहीं है

कोई नहीं मैं निपट अकेला .............
चारदीवारी से करता बातें ................
पत्थर के भगवान सही ................
संग उनके कटती है रातें ..............
सो जाता जब नींद में गहरी ...............
भगवान सभी चिल्लाते है .......................
हमें अकेला निपट छोड़ क्यों  .................
मानव खुद सो जाता है .................
सर पटकते , रोते रहते ................
जब मंदिर में मेरे आते है .................
कमरों में लटका फिर हमको ...............
पहरेदारी रात करवाते है ...................  जब आप अपने को अकेला कहते है तो सीधे भगवान के अस्तित्व को नकारते है और तब उस भगवान को कितनी पीड़ा होती होगी जो आपके घर में २४ घंटे दिवार पे लटक कर , मंदिर में बैठ कर आपको बचत है ...यानि मानव भागवान का मूल्य तक अनहि समझता और फिर जब भगवान उदासीन होता है तो सिर्फ तांडव होता है ......मौर का सैलाब आता है ........आप मानिये चाहे न मानिये ...................शुभ रात्रि

Friday, June 21, 2013

मैं सिर्फ रात भर नहीं हूँ

निशां की पीड़ा तुम क्या जानो ..........
कालिमा कह उसको पहचानो ...............
सौन्दर्य बोध वो है उसका सच ...........
आलोक को दुश्मन उसका मानो............
कितनी आहत साँझ ढले वो ...........
जब उन्मुक्त नशीली होती है ...............
सूरज को है जीत कर आती ..............
दीपक से चीर तार तार होती है ............
निपट तमस आँखों के भीतर ..........
सुन्दर सपने रात से लाते है .............
कितनी किलकारियों के सृजन ........
ढलते पहरों की गोद में पाते है ..............
फिर क्यों जला उठते हो लट्टू .........
और रात का करते हो अपमान ..........
जी लेने दो चांदनी चकोर को ..............
रजनी का भी कुछ तो है मान ...................ये रात की विकलता है की जब वह अपने सौंदर्य बोध के साथ हमारे सामने आती है तो हम उसके प्रेम का अपमान करके बिजली जला देते है जबकि वो न जाने क्या क्या हमको दे जाती है .........तो रात को प्रेम से देखिये ............शुभ रात्रि

Thursday, June 20, 2013

साँसों की बेवफाई

साँसे दौड़ी तन के रथ पर .................,
क्या कुछ ना देखा पथ पर .............
जरा साँसों का खेल तो देखिये .............
एक को छोड़ सवार दूसरे पर .................
आपको लगता है कि आप जी रहे है और आप नश्वर शरीर को लेकर घमंड करते रहते है पर सच यह है कि प्रेम साँसों से करिए पता नहीं आपकी बेरुखी से कब बेवफा हो जाये .............................शुभ रात्रि

Wednesday, June 19, 2013

जीवन चला चार कंधो पर

मैंने भी लूटा है खर्च ,
होने से पहले सांसो का मजा ,
बेवजह दौड़ते पैरो को मिलेगी ,
कब की फ़िक्र कौन सी सजा ,
कहते सभी थे रुक जाओ ,
ये उम्र सांसो की कमाई है ,
नौ महीने की तपस्या से ये ,
इस दुनिया में आ पाई है ,
पर लगा कि ये बकवास तो ,
सदियों से दुनिया ने गयी है ,
कितना थका कि आज मन ,
तन भी देखो उठा ही नहीं ,
चार कंधो पर चला जा रहा जैसे  ,
जीवन आलोक ने छुआ ही नहीं ......................................जीवन को समझिये और इसको भी पैसे की तरह खर्च करिए वरना मिलकर भी मिटटी में मिल जायेगा

Saturday, June 15, 2013

मौत से प्रेम

मैंने घर के सारे दरवाजे बंद कर लिए है .......
बंद कमरे में उसके संग सिमट लिए है ...............
अब कोई नहीं कहता आलोक बदचलन तुमको .......
जिस्म से लिपटी मौत खुलेआम जी लिए है ................. ये दुनिया अजीब है और मैं उस अजायबघर का नायाब  जानवर ...........मनुष्य !!!!!!!!!!!!! आप भी तो मनुष्य ही है ना ...........शुभ रात्रि

Thursday, June 13, 2013

भगवन तभी कहलाओगे .....................................

जब पत्थर से बन जाओगे ............
भगवान तभी तुम पाओगे .............
गडों जमीं में या जलो चिता में .............
जन्नत , स्वर्ग तभी ही पाओगे ...........
जितनी गर्मी जीवन में पाई ...........
उससे कम अंत में न तुम पाओगे .........
आखिर मिलना भी है तो किससे...............
ईश्वर, अल्लाह गॉड जब गुनगुनाओगे ..............
सब रोयेंगे ले मलिन से चेहरे ............
परम तत्व से मिल तुम शांत हो जाओगे ................
छोड़ तुम्हे सब  लौटेंगे  घर जब ...........
खुद को अकेला नहीं तुम पाओगे ...................
शमशान तो कहती दुनिया है इसको ....................
यात्रा के अगले पथ तुम यही पाओगे ...............
कोई क्या जाने अब कहा गए तुम ...............
घर में मूरत सी बन जाओगे ...............
कर्मो के निशान पर चल कर ...............
लोगो में भगवान कभी कहलाओगे ................शमशान पर श्री जे पी सिंह के पञ्च तत्व में विलीन होते समय जो भाव आ रहे थे उनको आजेब तरह से उकेरा है क्योकि शमशान ही इस दुनिया से पूरी तरह जाने का रास्ता है .............क्या आप सहमत है .......शुभ रात्रि

Wednesday, June 12, 2013

श्रधांजलि ..............

तुम जानते नहीं कितने दिलो में बस रहे हो ................
क्यों मेरी बेबसी पर  आज हस रहे हो ............
माना की अब ईद के चाँद से भी नहीं ...........
पर ख़ुशी है उस के पास ही जा रहे हो ...............
आज फिर याद आई तेरी हर वो बाते ..................
जब इस दिनिया से ही चले जा रहे हो ..........
एक बार तो खबर मेरी भी लेना तुम वहा...........
और पूछना कि तुम यहाँ कब आ रहे हो ..........
तुम तो भ्रष्टाचार से उब जल्दी चल दिए ...............
और मुझे इसी दलदल में छोड़े जा रहे हो .................
ले लो मेरा सलाम आज मेरे कंधो पर ...........
खुद चुप होकर आंसू दिए जा रहे हो ................
अब कौन पुकारेगा मुझे डॉ साहेब सुनिए ................
मेरी आवाज तो खुद लेकर जा रहे हो .................................अपने प्रिय श्री जे पी सिंह के आकस्मिक निधन पर एक अनशनकारी और उनके अनुज के श्रधांजलि के दो शब्द ............................

Monday, June 10, 2013

क्या छलते रहे माँ कहकर

जब से तुमको मुस्तरका किया ...............
कहा मैं एक बार भी जिया ....................
लोगो के बहकावे बाँट डाला..................
किसने नहीं जहर का घूंट पिया .............
आज तेरे आँचल को खीच रहे ............
सभी ने सिर्फ अपना हिस्सा लिया ..............
माँ कहकर तेरे वक्ष को निचोड़ा ...........
देख तेरे कितने हिस्से गिरवी दिया .................
बेमन से भी अगर तुझे अपना कहते ...........
शर्म आती कि हमने ये क्या किया ................
आज आलोक अँधेरे में आ है खड़ा ................
देख तेरे अश्क प्यास समझ सबने पिया .......................आईये एक बार सिर्फ एक देश में छिपी उस माँ को महसूस करे जिसको हमने भावना के दलदल में फसा कर न जाने कितनी बात चौराहे पर खड़ा किया है ................................क्या आप देश महसूस कर पा रहे है .............शुभ रात्रि

Sunday, June 9, 2013

गंगा सी जिन्दगी ....................

हिमालय से निकली गंगा सी जिन्दगी ............
शहर से गुजरेगी मैली सी जिन्दगी ...........
कितने भी जतन खेलेंगे सब जिन्दगी ...........
खुद को पाक कर बनायेंगे कोठे सी जिन्दगी .........
हर छूने वालो में अपने को तलाशती जिन्दगी ....
जिन्दगी में खुद से दूर जाती जिन्दगी ...........
मिठास की तलाश में घर छोड़ आई जिन्दगी .........
खुद की लाश को बाचती अब जिन्दगी ............
थक हार के जिन बाहों में समायी जिन्दगी ........
खारी ही सही दागो संग समाती जिन्दगी ........
गंगा से गंगा सागर बनी क्या पाई ये जिन्दगी ............
खुद के मन से ना निकल पड़ना ये जिन्दगी .........
तुझसे अपने पापो को धोने देखो खड़ी हैं जिन्दगी .........................शुभ रात्रि

Saturday, June 8, 2013

..........सुबह हो गयी

पूरब की हसरत पूरी हो गयी .............
रौशनी फिर उसकी हो गयी ................
कितना दमक रहा आफ़ताब फिर ...........
जिन्दगी फिर उसके नाम हो गयी ........................सुप्रभात

Friday, June 7, 2013

कोई मेरे संग रहने लगा ........................................

मुझमे अकेलेपन का एहसास रहने लगा .......
सच ये है कि अब साथ कोई रहने लगा ............
माना कि आलोक अंधेरो में नहीं आता ......................
पर एक साया रोज कुछ  कहने लगा ................
यूँ ही जिन्दगी में कब तक उकेरोगे मुझको ..............
कोई तो तेरी जुदाई का दर्द सहने लगा ................
इस दुनिया को मिटटी का खिलौना समझो ..................
साँसों से कोई बदन मुझे जिन्दा कहने लगा ...............
आज बारिश से सुकून पाया कुछ दिल है ......................
तेरे संग भीगने का सगल होने लगा ...............
कौन कहता है भिगोती नहीं आँखे ......................
मेरे दिल से होकर जब वो गुजरने लगा ...........
मुझमे अकेलेपन का एहसास होने लगा ...............
सच ये है कि अब साथ कोई रहने लगा .............................

koi dil me rhta rha

मैं तो उनकी जानिब से हर बात कहता रहा ......................
जमाना  मुझे जिन्दा दिल समझता रहा ..........
बस यूँ ही दौड़ती रही साँसों की सांस .........................
जब तलक कोई दिल में मेरे रहता रहा ............................

Saturday, February 16, 2013

kya yahi hai unka chehra

मेरी ख़ुशी पर वो ,
ख़ुशी का इजहार कर न सके ,
मेरी मौत पर वो ,
अपनी मौत का ऐतबार कर नहीं सके ,
कहते थे हमेशा ,
दो जिस्म में एक जान है हम ,
मेरी कब्र की बुनियाद  पे खड़े वो ,
अपने घर की दीवार गिरा, न सके ...........

Friday, February 15, 2013

kya aap kamal hai

शहर में सभी शरीफ हो गए ,
ना जाने कितने मशरूफ हो गए ,
मैं कीचड़ में रहता रहा पर,
वो कमल बदस्तूर हो गए .....................आप सभी बसंत पंचमी की शुभकामना और इस लाइन में देखिये उन लोगो के अक्स तो अपने को कमल दिखने के लिए सिर्फ कीचड़ uchhalne में विश्वास रखते है

Sunday, January 27, 2013

साँसों का भरोसा

लपेट कर सांसो को आज तक ,
बारिश , सर्दी गर्मी में अब तक ,
चल ही तो रहे थे कि सब मिटा ,
जीवन न जाने कहा अब सिमटा,
चाहा बहुत पर अब ऐतबार नहीं ,
समझा एक बार हर बार नहीं ,
मौत ही भली जो अंतहीन रही ,
छुप कर खेली पर अर्थहीन नहीं .............................. क्या आपको नहीं लगता कि मौत को हम सब रोज जीते है और जो जीते है वह है अपनी मौत का वो रास्ता जो हम सबको अनचाहे तरीके से चलना ही है ..................आप क्या जी रहे हैं ????????????????????जीवन ?????????? .शुभ रात्रि

Friday, January 25, 2013

Woman Dalit and Human Rights in India

Woman Dalit and Human Rights in India

आओ बाज़ार से झंडा ले आये ????????????????

झंडा बिकता है ,
पर किसको दिखता है ,
देश का गौरव तरसता है,
पैसे के बीच कसकता है ,
सैनिको के खून से रंग कर ,
बाज़ार में वो दरकता है ,
झंडा बिकता है ,
पर किसको दिखता है ...............................................आइये बाज़ार से एक झंडा खरीद लाये ..........................गणतंत्र क्या है सबको बताये

Monday, January 21, 2013

झंडा मुफ्त मांगिये

कितने बेबस दिखे वो वहा से ,
जब अपने खून को बिकते देखा ,
अपने हौसलों से रंगे तिरंगे को ,
बाज़ार में उतारते हुए देखा ,
हम सब भी खड़े हो गए वहा,
एक तमाशबीन की तरह ऐसे ,
जैसे खरीद दार की आदत सी हो ,
तिरंगे को खरीदना इबादत सी हो ............................आप सब एक सम्मानित भारतीय है और आपको जैसे मुफ्त में खाना , घर , शिक्षा बिजला, चाहिए वैसे मुफ्त में क्यों नहीं क्या झंडे से इतना भी लगाव नहीं हम पैदा कर पाए ..सोचिये और कहिये शुभ रात्रि ....अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ मिल कर आवाज उठाइए .....झंडा मुफ्त मांगिये

Saturday, January 19, 2013

मैं पश्चिम का सूरज हूँ

मैं पश्चिम का सूरज हूँ ,
तुम पूरब के बन जाओ ,
मैं निस्तेज तिमिर का वाहक ,
तुम पथ के दीपक बन  जाओ ,
मैं और तुम दोनों ही रक्तिम ,
अंतर बस इतना पाता हूँ ,
तुम उगने का अर्थ लिए ,
मैं उगने की राह बनता हूँ ...................................उगता और डूबता सूरज दोनों लाल होते है पर दोनों का अर्थ अलग है ....समझिये और कहिये शुभ रात्रि

Friday, January 18, 2013

क्यों इतने हताश हो

कितने हताश दिखे तुम ,
आज रिश्तो के बाज़ार में ,
जो भी बिक रहा था वहा,
बस कुछ ही हज़ार में ,
कितना चाहा कोई मिले ,
बिना किसी मोल तोल का ,
पर दिखाई जो दिया कभी ,
पता नहीं किस  खोल का

Thursday, January 17, 2013

मौत है जीवन पाने के लिए

क्यों रोता है मन ,
किसको जीता है तन ,
मैं तो अकेला आया ,
फिर ये किसको पाया ,
मैं जाऊंगा भी अकेले ,
छूटेंगे  दुनिया के मेले ,
तो कौन साथ में हैं ,
आज फिर रात में हैं ,
दिख तो सन्नाटा रहा ,
दिल ने फिर क्या सहा,
धीरे से किसने कहा ,
सो जाओ सपने को ,
आज सजाने के लिए ,
मौत को पाने के लिए ,
यही सच है सबका ,
बस चक्र है जाने के लिए ...................................क्या जन्दगी को आप जानते है या फिर मौत तक पहुचने के रस्ते को जीवन कहते रहे


तुम थे ही यहाँ कहाँ ????????????

जिन्दा तो वो भी है ,
जो अब जिन्दा नहीं है ,
अक्सर वही तो रहते है ,
हमारी आपकी बातों में ,
आप को जनता ही कौन,
अगर वो साथ में नहीं ,
एक विरासत बनाते है ,
जैसे सपने रातों में ,
कभी मत कहना कि,
तुम मर गए हो कभी ,
क्योकि जिन्दा थे कहाँ ,
बात तुम्हारी बाकी अभी ........शुभ रात्रि

Wednesday, January 16, 2013

koi milta hai

दर्द में आँखों से जब मोम बहा ,
तब लगा हांड मांस भी जलता है ,
कुछ लोगो को लगा कि आँसू है ,
किसे बताऊँ कोई रोज मिलता है

किसके इंतज़ार में

क्यों जिन्दगी चलती है इस कदर ,
कि कुछ करके भी मौत ही पायी,
और मौत का सब्र भी देखिये जरा ,
पैदा होने के पहले से इंतज़ार में ...............................जिसने सब्र किया वही जीतता है मौत की तरह अंततः ....शुभ रात्रि

Tuesday, January 15, 2013

लिखूं या सहूँ

आओ मैं एक कविता लिखूं
और तुममे मैं फिर दिखूं ,
कितना अरसा हो गया अब ,
कोई सन्नाटा क्यों आज सहूँ ,
क्या मैं आस पास तुम्हारे रहूँ ,
पर ये सब कैसे उनसे कहूँ ,
जो सिर्फ लूटने घसोटने के लिए ,
भारत अब मैं किस पर हसूँ
खुद पर या उन पर जो लेकर ,
तन, मन धन बता मैं कहा बसूं...........................................शुभ रात्रि

Friday, January 11, 2013

अगर मैं रोता नहीं तो

रोकर दिखाता तो वो ,
मेरा दर्द जान जाते ,
मर कर दिखाता तो ,
वो सच मान जाते ,
शब्द कब से इतने ,
बेगाने होने लगे है ,
कि हर तरह हर जगह ,
बुत नजर आने लगे है ,
मैंने तो हर किसी पर ,
विश्वास करके ही ,
हाथ बढाया था कुछ ,
दूर तक चलने के लिए ,
पर यह क्या विश्वास ही,
रो दिया हर पल कि ,
अब वो कैसे यहाँ जिए ,
आलोक को भला कहाँ ,
पता बोलने का सलीका ,
गाली देकर देखना चाहे ,
किसने क्या कब सीखा,
आज चर्चा थी मेरी यहाँ ,
मेरे चले जाने के बाद ,
क्योकि मौत के बाद
देश होता रहा है आबाद ,
कितने मुंह कितनी बात ,
रावन का ये कैसा साथ ,
राम को कहा से लाऊ ,
क्या फिर  लंका जाऊ ,
आदमी समझ लो मुझको ,
अपनी तरह ही बस एक बार ,
क्यों बार बार तन और
मन जाता है यहाँ हार .................................
........................पता नहीं लोग ये क्यों समझाना चाहते है कि वो मूल्यों के कर्णधार है जबकि भराव पुत्र को परिस्थिति के कारण शुक्राचार्य बनना  पड़ा था .................हम ने विश्वास करना क्यों छोड़ दिया और विश्वास के साथ बलात्कार क्यों हो रहा है यहाँ पर रोज .............................आज मन दुखी है पर ???????????????? शुभरात्रि .

Thursday, January 10, 2013

जानवर तो ऐसा नहीं करते

लड़ ...........की
लड़ ...........के ,
की से के तक ,
लड़ लड़ कर ,
हम क्या कर रहे  है ,
क्या हम जी रहे है ,
या उसको शराब ,
की जगह पी रहे है ,
कितने दुखी दिखे ,
जब उसकी पदचाप ,
गर्भ में सुनी तुमने ,
फिर क्यों लूटा ,
सड़क,बस , शहर ,
हर कही तुमने ,
कैसे मनुष्य हो तुम ,
उस जानवर से बेहतर ,
जो कभी कही भी ,
मादा को नही भरमाता,
न तो माँ कहता ,
ना बहन , पत्नी और ,
प्रेमिका बता कर खुद ,
एक प्रश्न बन आता ,
एक बार तो सोच लो ,
औरत का क्या करना ,
तुमको अपने जीवन में ,
क्यों कि हांड मांस में ,
उसके हिस्से क्यों आती ,
मौतों के तरीके जीवन में .............................जीवन में हम अपने लिए जीवन के सुख तलाशते हा और औरत के लिए मौत के प्रकार ???? क्या ऐसा नहीं है तो फिर औरत प्राक्रतिक तरीके से इतर ज्यादा क्यों मर रही है ??????????????/वह किसी जंगल में रह रही है ????????????? शुभ रात्रि

Monday, January 7, 2013

मुझे वहां पंहुचा दो

क्या मुझको ,
कोई ले जायेगा ?
कोशिश कर भी लो ,
पर हाथ तेरे या ,
उनके कुछ न आएगा ,
एक गोश्त के कारण,
ही तो भेड़िये,
दौड़ आ जाते है ,
हम चिल्लाते है ,
रोते बिलखते है ,
पर उनके लिए मेरे ,
आंसू ख़ुशी का ,
सबब बन जाते है ,
हमारे आंचल में ,
अंततः ढूध के श्राप ,
और आँखों में दरिंदो ,
के सपने रह जाते है ,
काट कर बिकते गोश्त ,
की दुकानों की तरह ,
जिन्दा लेकर मैं ,
थक रही हूँ अब ,
अपने को लुटते देख ,
ख़ामोशी तेरी होती
मेरे ही सामने जब ,
अब मुझे वहा भेज दो ,
जहाँ से कोई नहीं आता ,
आत्मा बन कर रहूंगी ,
सामने ना सही पर ,
ख़ुशी तो होगी कि,
अब लड़की बन के ,
जमीं पे दुखी न रहूंगी ........................................ लड़की के लिए हम सब कब ऐसा सोचेंगे कि उनको ऐसा लगे कि वह जंगल में नहीं एक मानव की संस्कृति में रहती है जहाँ उनकी इच्छा और गरिमा का ख्याल किया जाता है .....शुभ रात्रि

मुझे वहा पंहुचा दो


Sunday, January 6, 2013

लड़की का नाम नहीं होता

देश का नाम ,
विदेश का नाम ,
शहर का नाम ,
जहर का नाम ,
गाँव का नाम ,
दांव का नाम ,
जाम का नाम ,
नाम का नाम ,
पर नाम नहीं ,
उसका क्योकि ,
वह सिर्फ लड़की है ,
हांड मांस की ,
सिर्फ हमारी ,
इज्जत के लिए ,
उसका शरीर सिर्फ .
बेइज्जत के लिए ,
जब चाहो नोचो ,
घसोटो, लूटो ,
मार भी दो पर ,
उसको नाम न ,
आने दो सामने ,
क्योकि नाम कहाँ होता है ,
एक लड़की की न जात ,
ना पात होती है ,
लड़की इज्जत है सिर्फ ,
पुरुष के लिए ,
वह जिए या मरे ,
उसका नाम नहीं
आना चाहिए ,
तभी तो वह तरे,
जिन्दा  पर दुर्दशा ,
और मरने पर ,
उसके नाम पर फसा,.....................क्या लड़की के नाम आने के बाद उसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी या घटेगी ......सोचिये और कहिये .....शुभ रात्रि

Friday, January 4, 2013

मौत में रहने लगे

मौत की ये ,
किस दुनिया में ,
रहने लगे ,
अपने में सिमट ,
कर आलोक ,
सब रहने लगे ,
मेरे मरने पर ,
कुछ तो कहेंगे ,
बुरा था या ,
अच्छा कहेंगे ,
पर आज मेरी ,
तन्हाई पर ,
न साथ रहेंगे ,
ना कुछ कहेंगे ,
दुनिया जिसे कहते ,
जादू का खिलौना ,
मिल जाये तो मिटटी ,
खो जाये तो सोना ,
कैसे चलेगा ये ,
एक बार इधर ,
आकर भी ना कोई ,
किसी के साथ चलेंगे ,
बस चार कंधो में ,
हमारे साथ रहेंगे ........................... दुनिया यानि सिर्फ अपने चेहरों की तलाश और अपने में जी जाना .......वही हाड मांस का आदमी कभी हिन्दू तो कभी मुसलमान बन जाता है कभी दलित तो कभी सवर्ण बन जाता है यानि मनुष्य कभी एक सूत्र में पिरो कर न देखा जायेगा ....शत शत अभिनन्दन मानव तुमको निश्चय ही तुम जानवरों से भिन्न हो भिन्न हो ................सुप्रभात

मौत में रहने लगे

मौत की ये ,
किस दुनिया में ,
रहने लगे ,
अपने में सिमट ,
कर आलोक ,
सब रहने लगे ,
मेरे मरने पर ,
कुछ तो कहेंगे ,
बुरा था या ,
अच्छा कहेंगे ,
पर आज मेरी ,
तन्हाई पर ,
न साथ रहेंगे ,
ना कुछ कहेंगे ,
दुनिया जिसे कहते ,
जादू का खिलौना ,
मिल जाये तो मिटटी ,
खो जाये तो सोना ,
कैसे चलेगा ये ,
एक बार इधर ,
आकर भी ना कोई ,
किसी के साथ चलेंगे ,
बस चार कंधो में ,
हमारे साथ रहेंगे ........................... दुनिया यानि सिर्फ अपने चेहरों की तलाश और अपने में जी जाना .......वही हाड मांस का आदमी कभी हिन्दू तो कभी मुसलमान बन जाता है कभी दलित तो कभी सवर्ण बन जाता है यानि मनुष्य कभी एक सूत्र में पिरो कर न देखा जायेगा ....शत शत अभिनन्दन मानव तुमको निश्चय ही तुम जानवरों से भिन्न हो भिन्न हो ................सुप्रभात

आस्तीन का सांप

मेरे दर्द ,
पर जब ,
कोई मुस्कराता है ,
शायद उसके ,
अंतस का आदमी ,
तभी जी पाता है |
मेरे अँधेरे पर ,
जलता दीपक ,
उनके घर में एक ,
सुकून दे जाता है |
ना जाने कैसी ,
फितरत पाल ली ,
आलोक दुनिया में ,
कोई क्यों आता है ?
जीते है जिसके साथ ,
वही आस्तीन ,
का सांप निकलेगा  ,
कौन जान पाता है ................................ हम अब इतना समय पा ही नहीं पा रहे कि किसी को समझ सके और उसी कारण हम अकसर धोखा कहते है किसी की इज्जत लूटी जाती है  और कोई किसी को प्रेम में सब कुछ लुटा कर दुनिया से चला जाता है ...............क्या आप को कोई नहीं मिला ..........शुभ रात्रि

Thursday, January 3, 2013

दर्द भी किलकारी के साथ है

सूरज के रास्ते में ,
चाँद भी आता है ,
हर सुबह का पथ ,
अंधकार भी पाता है ,
क्यों देखते हो जीवन ,
हर दर्द से दूर ,
कभी कभी दर्द ,
किलकारी के काम आता है .........................क्या आप अपने दर्द में दर्द थोडा  सयम नहीं रखना चाहिए .................हो सकता है कई सवेरा आपका इंतज़ार कर रहा हो ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन  आपके मंगल की कामना करता है ...सुप्रभात

बिखरा हूँ

रेत के ,
छोटे छोटे ,
कणों सा ,
बनकर बिखरा हूँ ,
मैं पत्थर ,
अपने जीवन ,
की दुर्दशा से ,
बहुत सिहरा हूँ ,.............रात गहरा रही है पर पता नहीं क्यों नींद कोसो दूर है , मौत का सच जनता हूँ पर यह नहीं जान पा रहा की इस दुनिया में किस मकसद से आया हूँ ..............क्या मैं सिर्फ खाना , शादी के लिए ही पैदा हुआ हूँ या कभी कुछ बेहतर कर पाउँगा ??????????????????////////

क्या कौन पाता है ?????????????

चिन्ताओ के ,
भंवर में फसकर ,
कौन कहाँ ,
जी पाता है ,
स्वप्निल दुनिया ,
के सपने लेकर ,
हर कोई यहाँ ,
पर आता है ,
मिल जाये सभी ,
कुछ तो अच्छा है ,
खो जाने पर ,
पछताता है ,
जो पाया है ,
कर्म के पथ पर ,
कण कण हर क्षण ,
जाने कब बिक जाता है ,
कब समझा मानव ,
दुसरो के दर्द  को ,
खुद के सुख में ,
हस नहीं  वो पाता है ,
धीरे धीरे सब ,
सपने को खोकर ,
पथराई आँखों से वो  ,
श्मशान तलक ही आता है ,
क्यों न समझा आलोक ,
ये छोटा सा मर्म यहाँ ,
अंधकार को सच समझ ,
उसका कैसा ये नाता है .......................क्या हम भूल रहे है है की हम जितने भी सुख के पीछे भाग ले और किसी कुचक्र से उसको पा भी ले पर जाना तो है ही .............हम सब अपने पूर्वज के नाम तक नहीं जानते तो आपके इस कार्यो के लिए कौन आपको याद करने जा रहे है ....अगर्ये सच है तो आइये थोडा भाई चारा और सुकून को जी ले ....................शुभ रात्रि


Wednesday, January 2, 2013

क्या करा पाओगे ?????????????

जो खुद ही ,
टूट गया हो ,
अपनों से ,
छूट गया हो ,
उस फूल से ,
क्या भगवान पाओगे ?
अपनी ही ,
कृति को बर्बाद देख ,
तुमसे ही उसकी ,
मौत को देख ,
क्या भगवान से ,
कुछ भी करा पाओगे ?....................हम मनुष्य भी भगवान के प्रतिनिधि है पर क्या उनको तोड़ कर हम उस भगवान तक पहुच पाएंगे ???????????? अगर नहीं तो बदलिए अपने चारो तरफ .................शुभ रात्रि