दिल खर्च हो रहा है ....
दिमाग खर्च हो रहा है ..........
उम्र भी खर्च हो रही है .......
सांस भी खर्च हो रही है .....
कहा तक बताऊ किसी को .....
सब कुछ खर्च हो रहा है ..........
कंगाल होते जिस्म को ......
भला कौन सोच रहा है ............
कोई हमको नोच रहा है ....
कोई तुमको नोच रहा है .....
कोई कल की सोच रहा है .........
कोई आज को सोच रहा है ......
खर्च हो चुके कितना हम .....
आलोक कितना सोच रहा है ............हम अपने पैसे , माकन , धन के बारे में तो रात दिन चिंतन करते है ...पर शरीर को न जाने कौन सा कुबेर का खजाना समझते है कि इसके लिए सोचते ही नहीं और न जाने कितने अपने सपनो को कंगाल बना कर रुखसत हो जाते है ................शुभ रात्रि
दिमाग खर्च हो रहा है ..........
उम्र भी खर्च हो रही है .......
सांस भी खर्च हो रही है .....
कहा तक बताऊ किसी को .....
सब कुछ खर्च हो रहा है ..........
कंगाल होते जिस्म को ......
भला कौन सोच रहा है ............
कोई हमको नोच रहा है ....
कोई तुमको नोच रहा है .....
कोई कल की सोच रहा है .........
कोई आज को सोच रहा है ......
खर्च हो चुके कितना हम .....
आलोक कितना सोच रहा है ............हम अपने पैसे , माकन , धन के बारे में तो रात दिन चिंतन करते है ...पर शरीर को न जाने कौन सा कुबेर का खजाना समझते है कि इसके लिए सोचते ही नहीं और न जाने कितने अपने सपनो को कंगाल बना कर रुखसत हो जाते है ................शुभ रात्रि
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
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