Friday, November 30, 2012

kya kar rhe ho

जिसको सुबह कह  रहे हो ............क्या उसमे रह रहे हो ..............कितने उजाले लोगे तुम यहाँ ....................क्या आज ऐसा कुछ कर रहे हो .................जीवन क्या आज है कल नही ................क्या तुम मनुष्य बन रहे हो .................आलोक तो फैलता ही रहेगा यहाँ ..................क्या किसी को रोशन कर रहे हो ........................अपने जीवन का हर पल यहाँ पर ऐसे जिए ताकि लोग याद करे न करे पर आपको लगे की दुनिया को मैंने भी स्वर्ग बनाया था ...................तो आइये मिल कर कहिये सुप्रभात

dur ho rha hai

जीवन का स्वर चुप हो रहा है ...............देखिये अब सारा शहर सो रहा है .................सर्द है रातें खुद जिन्दगी की तलाश में ..................कोई मेरा अपना सपनो में खो रहा है .................. ये कैसी आरजू है ऋतु से तुम्हारी .................कोई  क्यों सन्नाटे में  फिर रो रहा है .....................आलोक जब जरूरत रात में भी तुमको ....................क्यों रिश्ता तेरा पूरब से दूर हो रहा है ...................पहले हम सब को जानना चाहिए कि हम वास्तव में क्या चाहते है ............फिर चाहे रात हो या दिन .........सब चलेगा पर अभी शुभ रात्रि

Thursday, November 29, 2012

khel

आँख मिचौली का खेल चल रहा न जाने कब से .........................कभी रात  तो कभी दिन के होते हम तब से .......................पर नींद में लाती ररत सपनो का जीवन ......................... और मिला देता है पूरब हकीकत को  सब से ............................कितना सुंदर है खेल देख लो प्रकृति का .....................कुम्हार के चाक सी प्रयास आकृति का .............तुम और कौन नही हिस्सा इसकी संस्कृति का ....................सूरज में आलोक है आया परिणाम  इसी की  कृति का ......................इतनी अद्भुत प्रकृति के खेल को अगर हम नही समझ रहे है तो फिर क्यों और किस अर्थ में हम मनुष्य है ....................अगर बुरा लगा तो कहिये ....सुप्रभात

Tuesday, November 27, 2012

raat kaisi thi

मैं क्या बताऊ रात कैसी थी .................बस शायद आप ही  जैसी थी ...................दुनिया में रहकर भी दुनिया में न रहा .......................शराब से ज्यादा मदहोश करने जैसी थी ...................
पर आलोक को मालूम है जिन्दगी ..................... एक बार मिली है फिर न जाने कब ...................पूरब की दस्तक को मन ने सुना ...................क्या कहूँ  सुबह की धूप ही कुछ ऐसी थी ....................मानव बनने के बाद सोते रहना ठीक नही हैं ...तो कहिये सुप्रभात

Sunday, November 25, 2012

jab lete ho .......................

कैसे कह दूँ कि बाहर  अँधेरा है अभी ......................क्योकि उजाला देखा इन्ही आँखों ने कभी ......................मैं तो आया हूँ यहा मुसाफिर बनकर ..........................क्या तुम वही  ये जान न गए थे तभी ..............................तो क्यों इतना अवसाद आज लपेटे हो ...................दर्द का एक दरिया आँखों में समेटे हो .................समय पर भरोसा रखो अभी आलोक .....................पूरब के कुछ ख्वाब लेकर तुम लेटे हो .....................संयम ही सबसे बड़ा दरवाजा है जहाँ से आपके लिए सब कुछ निकलेगा पर अभी तो शुभरात्रि

Saturday, November 24, 2012

mitna to hai hi

ठण्ड का आलिंगन आज बहुत फिर ...................... तन  मन को सब से  फिर छिपा रहा  ...................लड़ रहा पूरब में सूरज कोहरे से .......................संघर्ष का मतलब सबको  बता रहा .................जीवन का मतलब एक बना पिंड से ..................जो  साँसों से खुद को चला रहा ........... जो बना है  वो मिटेगा का एक दिन ................... सुख दुःख का दर्शन दिखा रहा ..................... चुकी जीवन का निर्माण किया जाता है इस लिए उसका क्षय तो होना ही है .............इस लिए आप जो भी सम्बन्ध, घर , नौकरी , शादी , जीवन बना रहे है ....उन सबका का क्षय निश्चित है इस लिए अपने द्वारा बनाये दुःख के मार्ग पर चल कर दुःख करने का कोई मतलब नही है ................तो आइये कहते है सुप्रभात

samunder ke kinare

बहुत देर हो गयी रात हो गयी ........................कुछ देर रुके क्या लो सुबह हो गयी ...............कैसे कहूँ इस दुनिया को जादू का खिलौना .......................कल गूंजी थी किलकारी आज खामोश हो गयी .................चलो कुछ देर सही बालू से खेला जाये .................बनते बिगड़ते घरौंदों को देखा जाये .......................कोई लहर भिगो देगी मेरे सपनो को ......................... चलो समुदर के किनारे बैठा जाये ........................जो वास्तव में जीना चाहता है वह समुंदर के किनारे बैठ कर सपने रचता है और वही मजबूत इरादों को साबित करता है ...................अगर है इतना दम तो चलिए बनाते है एक सपना ........................शायद आपका और अपना ................कहकर शुभ ratri

Sunday, November 18, 2012

uska bandh kar

क्यों नही आई उसकी जिन्दगी मेरी बनकर .............कल तो लगा था वही सच है सुनकर ...............आज मौत की तरह ठंडी लगी आगोश में .....................क्या था जो लुट रही थी आंख नम कर ......................क्या ऐसा लगा जो जिस्म से नही हासिल ...............क्यों नही कह सकी साँसे खुल कर ................सिर्फ आँखों की मान दिल को जान लिया ...................कैसा रहा प्रेम आलोक से उसका बंध कर .................................आसमान नीला नही हैं फिर भी जिसको देखो नीला नीला कह कर जिए जा रहा है ...............उसी तरह हर रिश्ते को सिर्फ आंख से देख कर उसकी सच्चाई नही जानी जा सकती पर अकसर रिश्ते शिकार इसी का बनते है ................शुभ रात्रि 

Sunday, November 11, 2012

deepawali manate hain

जिन्दगी आज बेकार सी लगने लगी है ,
बाज़ार में बोली बेहिसाब लगने लगी है ,
कितनी बार बदल कर देखूं  मैं तुझको ,
हर जिन्दगी में वही फिर दिखने लगी है ,
लोग कहते है आलोक होकर अँधेरे में ,
किसको बताऊँ आंखे छलकने लगी है ,
जन कर भी अन्जान नही मैं हुआ हूँ ,
अन्जाने में मौत अच्छी लगने लगी है ,
कोई नही जो ऋतु से यहाँ बच पाया हो ,
मेहँदी से सरुर में खुद न रच आया हो ,
उसका तो काम था आना और चले जाना,
दीवाली में दीपक सी आज लगने लगी है ..................आप सभी को आज से बदलने वाली ऋतु के प्रकाशोत्सव में धन्वन्तरी त्रियोदशी की शुभ कामना ............ताकि आप ऋतु का हलके कम मुने एंड गुण गुने एहसास में डूब कर बदलती ऋतु को जव्वाब दे सके .....पटाखा न चलाये ......आओ किस भूखे , गीब बच्चे को हसाए ....उसे एक रोटी या एक पेन्सिल दे आये ...................आओ फिर से नयी दीपवाली मनाये ...........

Saturday, November 10, 2012

ritu badal rhi hain

अधखिली धूप में जिन्दगी हस रही थी ,
धुंध फैला के ऋतु अपने  में मचल रही थी ,
मैं  डूबा अभिनव के  नाटक में इस कदर ,
जिन्दगी अनदिखी  कल ग़ज़ल रही थी ,
बार बार एक शांत नदी सी सामने पड़ी ,
न चाह कर आज वो थी फिर ऐसे खड़ी,
लगा लपक कर समेट लू फिर उसी तरह
अंधेरो की आज याद आ गयी कई कड़ी ,
बदल रहीये कौन सी ऋतु आज आ गयी
कल किसी के साथ आज किसे वो पा गयी
अकड़ के मर गया कोई आज फिर प्यार में  ,
बदला जमाना और ऋतु बदल के छा गयी ..................................कोई भी प्राणी बिना किसी माँ का रक्त मांस लिए नही जन्म पाता है और यही कारण है कि पूरे जीवन कोई भी प्राणी बिना किसी के सहारे के जी नही पाता ............तो जो आपके सहारे जी रहा है उसको स्वार्थी क्यों कहते हो ..............ऋतु भी तो बदलती रहती है पर क्या आप उसको दोष देते हैं ..नही बल्कि आप ऋतु के साथ जीने के लिए ना जाने कितने उपाए करते है ...........जिसे आप और हम संस्कृति कहते है या पजीर फैशन कहते है .............तो आज से ऊँगली उठाना बंद ...और कहिये शुभ रात्रि 

Friday, November 9, 2012

jindgi kisi ki nhi

हरी हरी घास पर जिन्दगी इंतज़ार में  ,
सुबह से ही न जाने किस इकरार में ,
सरपट दौड़ती मेरी सांसो का चलना ,
उसकी आंखे न जाने किस तकरार में ,
शायद मौत से मेरी अब तक उबरी नही ,
छूकर देखती मेरी परछाई कही तो नही ,
राख में कोई भी गर्मी अगर ढूंढ़ लेती ,
कुछ देर मर कर मेरे साथ चली तो नही ,
न जाने क्यों घूमती मेरे इर्द गिर्द आज ,
क्या अब तक जी रही मेरा  कोई राज ,
उसकी धड़कने क्यों बज रही बन  साज,
आलोक सा अँधेरा मिला मिटा के लाज ,
ऋतु की तरह बदल लो तुम भी खुद को ,
आज गर्म हवा हो कल बनाओ सर्द खुद को ,
लोग मिल जायेंगे काटने को समय अपना ,
मौत में सिमटी जिंदगी समझ लो खुद को ........................जो हो रहा हैं उस पर दुःख किस लिए ....जो हो रहा हैं वो गर होना ही था तो उसको समय का सत्य मान कर बस जीते जाओ .और आज जिस ऋतु से आनंद लिया हैं .कल्किसी और के हो जाओ ......................प्रकृति खुद आपको बेवफा होना सिखाती है .जिस गीता कर्म योग कहती है ....तो दुःख में ही सुख देखिये और मेरे साथ कहिये .....शुभ रात्रि


Thursday, November 8, 2012

nafrat tali

आज जिन्दगी जख्म खायी हुई मिली ,
ना जाने क्यों उसकी कमी फिर खली ,
आलोक में भी उसको अँधेरा क्यों दिखा ,
सब लुटा कर साँसे आज कहा को चली ,
सामने थी आज मगर मुद्दत का सफ़र ,
फूल बन कर मिली जो कल थी  कली,
एक चहेरा मिटा उसने दूसरा कर लिया ,
मौत को देख क्यों आज जिन्दगी हिली ,
ऋतु की तरह बन हम कहा खो  गए ,
दिल की आरजू आज फिर कैसे जली ,
तू नही वो जिसके साथ थी मैं अब तक ,
चार कंधो को पाकर हर नफरत  से टली............................जिन्दगी कहती है कि तुम एक नही कई चेहरे लगाये हो .तभी तो मैं असली वाले की तलाश में तुमको छोड़ कर जा रही हूँ .इसको मत कहो मौत ....मैं दूसरी जिन्दगी पा रही हूँ ...............शुभ रात्रि

Monday, November 5, 2012

jivan hai kaudiyo ke mol ...................

किसी को जिन्दगी मिल जाती है कौड़ियो के मोल ,
अक्सर वो मेरी उसकी बेबसी का करते दिखते तोल,
नही जानते है कि पानी तो फैला पड़ा हर कही यहा,
मीठे  पानी के सोते मिलते है जमीं को लेते जो खोल ,
गीली मिटटी में तो हर कोई उगा लेता है रोटी अपनी ,
रेत पर दिखाओ घर बसा कर  और फिर कुछ मीठे बोल ,
आसमान से पानी की आरजू कौन करती है नही आँखे ,
अपने पसीने से दाना उगा कर सच की खोल दो पोल ..............क्या आपको भी जवान ऐसे ही मिल गया है कि आपको लगता है कि जो गरीब है या जिनके पास कुछ नही है वो उनके पूर्व जन्मो का पाप है या फिर आप बचना चाहते है उस जानवर की तरह जो अपने सिवा किसी के लिए नही करता ..................आदमी कहा है ...........शुभ रात्रि

Sunday, November 4, 2012

nukkad par ...............

जिन्दगी सभी को मिलती है नुक्कड़ पर
जिन्दगी पहुच जाती है खुद नुक्कड़ पर ,
कितना भी जतन कर लो नसमझपाओगे
मौत भी खड़ी मिलती है हर नुक्कड़ पर ,
जीवन में दिल की आहट आतीनुक्कड़पर
जब वो सामने से गुजर जाती नुक्कड़पर
कितना ही वक्त गुजर जाता नुक्कड़ पर
शायद वो मुड़ कर देख ले नुक्कड़ पर ,
पता नही क्यों सन्नाटा सा है नुक्कड़पर
कुछ गम सुम सा लगता है अब नुक्कड़पर ,
लोगो ने बताया वो मासूम अब न आयगी ,
कल कोई उठा ले गया उसे नुक्कड़ पर ,
रोज ढूंढ़ता उसके निशान नुक्कड़ पर ,
उसकी हसी दौड़ती मिली नुक्कड़ पर ,
एक प्रश्न सा तैरता हवाओ में आज भी ,
क्यों लड़की मौत ही जीती है नुक्कड़ पर
मैं क्या बताऊ उलझन इस नुक्कड़ पर ,
बस एक अक्स रह गया इस नुक्कड़ पर
वो भी थी रोई बहुत इसी नुक्कड़ पर ,
परायी हुई थी मुझसे इसी नुक्कड़ पर ,
कहा छोड़ पाया था उसे नुक्कड़ पर ,
मौत के संग हो लिया था नुक्कड़ पर ,
प्रेम तो दिखाया जिन्दगी से नुक्कड़ पर
फिर दुनिया से मुंह मोड़ लियानुक्कड़पर
क्या तुम जानते हो उस पार नुक्कड़ के ,
क्यों एक शून्य सा रह जाता नुक्कड़ पर
लोग कहते  है भगवान वहा नुक्कड़ पर,
फिर रोने की आवाज क्यों नुक्कड़ पर ............................जिन्दगी में हम सब नुक्कड़ के पर न देख पाए है और न देख पाएंगे ........इसी लिए नुक्कड़ पर मौत , लड़की से छेड़ छाड़ , बलात्कार , अपहरण और फिर एक सन्नाटा नुक्कड़ पर मिलता है .........क्या आप ने नुक्कड़ को ध्यान से देखा है ..................शुभ रात्रि 

Saturday, November 3, 2012

thandak mubarak

जिन्दगी से मोहब्बत कौन कर पाया है ,
जिसने की वो कहा तक रह पाया है ,
मुझको तो मौत से मोहब्बत है उम्र भर ,
देखो आज शायद उसका पैगाम आया है
बदलती ऋतु सा उसका मिजाज ,मिला ,
कल जो ऋतु थी उसको भी आज गिला,
बोली कल मुझसे कितना लिपटे रहते थे
पर जिन्दगी की तरह ही मुझको सिला ,
मुझसे मोहब्बत करके उससे क्यों मिले ,
जीवन की  वंदना में फिर किधर चले ,
माना की मौत ही सच था मेरे जीवन का
ऋतु  फूल क्यों फिर दामन में मेरे खिले
आज आलोक मिलकर जिन्दगी से गया
मौत सी रात सर्द ऋतु की देखो ये  ह्या,
ठण्ड से अकड़ कर जो अभी गया है वहा
कल फिर वो आएगा बनकर कोई नया .......................जीवन में आने जाने का क्रम चलता रहता है  और यही कारण है कि बदलती ऋतु सुख और दुःख हमेशा देती है पर ऋतु का इंतज़ार किसको नही होता क्योकि हर ऋतु में फसलो के पकने , फूलो के खिलने , पानी की फुहारों , सावन के झूलो , किलकती धुप के स्वर है जैसे जिन्दगी में ही मौत के स्वर है पर हम जिन्दगी को जीना चाहते हा वैसे ही ऋतु का भी इंतज़ार सबको रहता है ..............गुलाबी ठंडक सभी को मुबारक .......शुभ रात्रि

Friday, November 2, 2012

karwa chauth ????????????????

आज फिर चाँद में सुरूर है ,
लगता है कोई बात जरुर है ,
मांग के सिंदूर में चमकती ,
उन की जिन्दगी का गुरुर है ,
आज भी भूखी प्यासी रही ,
पर कल से कुछ मगरूर है ,
पर  आज तो प्रियतम की है ,
जिन्दगी जो उसका नूर है ,
करवा का कारवां चला है ,
एक दिल में दो ही पला है ,
उनकी निशानी ऊँगली में है ,
परदेश में जाना उनका खला है ,
पर क्या हुआ उनका अक्स है ,
दिल के दरवाजो में एक नक्स है ,
चाँद को देख फिर निहारा उनको ,
पति से प्यारा क्या कोई शख्स है ,
आसमान के आगोश में चाँद आज है ,
तेरी पलकों में कोई फिर मेरा राज है ,
रात न गुजरेगी आज तनहा तनहा
शहनाई की वो रात आज पास पास है ...........जिस देश में इतने खुबसूरत एहसास हो पति पत्नी के लिए , अगर वह से किसी भी विवाहित महिला की सिसकी सुनाई दे तो क्या उसे चाँद में डूबी रात की ओस की तरह अनदेखा करके बस अपने में जीते रहे है या फिर महिला की करवा यात्रा के भाव को समझ कर उसे पुरे जीवन हँसाने का यत्न करे ........................आप सभी को करवा चौथ के असली अर्थ की बधाई ..................शुभ रात्रि

Thursday, November 1, 2012

kab kya kaha hai tumse

जिन्दगी मैंने कब क्या कहा तुझसे ,
जो भी मिला क्या तूने  पूछा मुझसे ,
बस चलता ही रहा एक नदी की तरह ,
अंत में खारा पानी ही मिला उस से ,
जब चला तो हीरे सी उमंग लेकर था ,
ये किस दौर ने मैला बनाया मुझको ,
अपने दामन से ज्यादा सबका देखा ,
कितने पाप से बचाया मैंने तुझको ,
कोई है जो आज बढ़ कर पकड़ ले ,
अपनी बाहों में बस थोडा जकड ले ,
शायद बहना ही मेरी जिन्दगी रही ,
मेरी मिठास पर भी थोडा अकड ले ,
शायद  ये दौर ही है आदमी का यहा,
किस के सामने दुःख ले बैठी मैं  यहा,
 यहा तो प्यास बुझाने की होड़ लगी है ,
आँचल को मैं खुद मैला कर बैठी यहा ......................क्या नदी क्या जमीं सब के दर्द को हमने अपने जीने का साधन बनाया है .................शायद इनकी गलती यह है कि इन्होने औरत का अक्स लेकर जीना चाहा....................क्या मेरी बात सही नही लग रही है .....................शुभ ratri