आज शमशान खुला था
शायद फिर कोई जला था
किसी के सपने किसी का जीवन
किसी का कुछ करने का जुनून
शायद मिट्टी में मिला था
आज शमशान फिर खुला था
पूरब से चढ़ते सूरज के साथ
न जाने कितने बातों का
सिलसिला चला था
लगता था कल का सूरज
जब फिर निकलेगा
कुछ बातें पूरी होगी
कुछ नई फिर से बताई जाएगी
कुछ नई सजाई जाएगी
चांद की चांदनी में फिर से
सांसों की कहानी गाई जाएगी
पर सब कुछ आज फिर से हिला था
क्योंकि आज फिर शमशान खुला था
हर कोई भी यह चाहता था
कि सब लोग मिलकर
एक साथ चलते रहें मिलते रहे
कभी सुख में कभी दुख में
कभी दिन में कभी रात में
एक साथ खिलते रहे खिल खिलाते रहे
किसी ने अपने सपनों की बात कही थी
किसी के दर्द की बात कही थी
पर नींद में सोया फिर कहां किसको मिला था
क्योंकि आज शमशान फिर खुला था
शायद कोई फिर जला था
यह जीवन के रास्ते यूं ही चलते रहते हैं
हम एक गलतफहमी में चलते रहते हैं
हमें लगता है हम ही जान गए हैं
दुनिया को सब कुछ सब तरह से
और कल जीत लेंगे इस दुनिया के
हर रास्तों को कुछ इस तरह से
पर एक दिन सारे रास्ते गुम हो जाते हैं
पथ पर चलने वाले पग रुक जाते हैं
ऐसा ही एक सच आज फिर हमसे मिला था
आज फिर शमशान खुला था
शायद कोई फिर से जला था
आलोक चांटिया "रजनीश"
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