Saturday, March 18, 2023

इंतजार राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित कविता

 इंतजार


सब कुछ डूबा,

 सा जाता है,

अस्ताचल की ओर ।

 कितना भी चाहो,

 पर डूबना ,

जब शाश्वत हो,

तो भला,

 प्रयास भी किस ,

अर्थ का सिवाय इसके,

 कि अपनी पथराई,

 स्थिर आंखों से ,

हाथ पर हाथ धरे ,

बस पूरब की तरफ ,

रात भर की ,

कालिमा के साथ ,

देखते रहे जब,

 वहां से फिर लाली छाए,

 पक्षी चहचहाये  ,

अपना गाना गाए ,

और दुख से टूटे ,

शरीर की थकान एक,

 अंगड़ाई के साथ ,

दूर कर मै ,

निकल निकल पड़ू,

 इस प्यारी अनूठी ,

सुबह का स्पर्श लपेट ,

किसी तरफ उजाले का,

 रंग रूप देखने ,

क्षणिक जीवन में ,

अमर मुस्कान के लिए ,

अपनी फिर से ,

एक पहचान के लिए ।


आलोक चांटिया राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

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