Saturday, March 18, 2023

बदनामी राजस्थान पत्रिका समाचार में प्रकाशित कविता

 बदनामी


हिल गया मेरा,

 प्रतिबिंब,

 एक कंकड़ के,

 गिरने भर से,

 श्वेत पारदर्शी ,

जल से जीवन में ,

मेरे ही सामने ,

मेरा रूप आकार ,

लुप्त हो गया,

मेरे ही जीवन में,

 पर मैं बैठा रहा ,

और समय के साथ ,

फिर स्थिर,

 प्रतिबिंब उभरा,

 लेकिन ,

अभी शेष था एहसास,

 उस कंकड़ का ,

जिसने मिटाया था ,

मेरा पहला चित्र,

 समय के अंतस में ,

मेरी शून्यता भरकर ।


आलोक चांटिया

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