बीज से फूटा,
नन्हा सा पौधा ,
आज वृक्ष बना है ।
दिल में संजोए,
किसी को छाया,
किसी को चारा,
कभी मधुमिता,
पवन का स्पर्श ,
देने का सपना।
सबके बीच ,
हंसने जीने का सपना।
खटाई । खटाई ।
आप सपनों को,
चूर करती कुल्हाड़ी ,
सब कुछ खत्म करती हुई।
लेकिन अभी भी ,
शेष एक सपना ,
कट कर भी वह
उपयोगी रहेगा ।
लोगों के जीवन को ,
देकर अपना जीवन ,
आलोक सहयोगी रहेगा ।
आलोक चांटिया
No comments:
Post a Comment