अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
वर्ष 2023 8 मार्च यह सिर्फ एक संयोग है कि जहां विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और विश्व की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भारत अपने यहां के महत्वपूर्ण त्यौहार होली को मना रहा है वहीं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी मनाया जा रहा है वैसे तो महिला दिवस का संदर्भ सिर्फ महिला की स्वतंत्रता के आधार पर परिभाषित होने लगा है लेकिन इस स्वतंत्रता का अर्थ क्या है इसको समझा पाने में शायद अभी हम लोग समर्थ नहीं हो पाए यदि हम होली जैसे त्यौहार को इस दायरे में रखकर थोड़ा समझने का प्रयास करें तो हम सभी जानते हैं होलिका दहन को सांख्य दर्शन के सापेक्ष समझने की आवश्यकता है इस दर्शन करने छोड़ पुरुष और प्रकृति है जहां पुरुष प्रकाश का प्रतीक बनकर रहता है वहीं पर प्रकृति को तीन महत्वपूर्ण गुण सतोगुण तमोगुण रजोगुण से परिभाषित किया गया है और जब पृथ्वी प्रकृति के अपने रजोगुण मैं पुरुष को आकर्षित करती है तो वह इस के बंधन में फंस जाता है बाद में वह इन्हीं रजो गुणों से मुक्ति पाने का प्रयास करता है अब यदि इसी तथ्य को हम होलिका के संदर्भ में समझने का प्रयास करें तो जब भी प्रकृति अपने अनाधिकृत गुणों के द्वारा प्रकाश को बाधित करेगी तो प्रकृति को ही नुकसान होगा जिसे हमने प्रतीकात्मक शास्त्र में होलिका दहन के रूप में दिखाया है जिसमें एक पौराणिक कथा बुआ होलिका और भतीजे प्रहलाद की कहानी को बताया गया है और इस बात को बर्नार्ड बुसाके ने भी अपनी किताब साइंस ऑफ मार्फो लॉजी में बहुत स्पष्ट रूप से लिखा है अपने मूल धर्म और दर्शन से दूर होने के कारण आज समाज एक अजीब से स्थिति में है जिसे हम उत्तर आधुनिकतावाद कह सकते हैं जिसमें हर व्यक्ति अपने मत को स्थापित करना चाहता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन यह सोचने की आवश्यकता है जैसा कि संलग्न चित्र से स्पष्ट है कि जब घर के पुरुष होलिका को देखने के लिए अपने घरों से होली में बने खाद्य सामग्री गोबर के बने कंडे और पूजा की सामग्री को लेकर जाते हैं तो वहां से वे कुछ होलिका के कुछ टुकड़े जो जलती लकड़ी के टुकड़े होते हैं उन्हें लेकर आते हैं और फिर घर की महिलाएं प्रतीकात्मक रूप से होलिका दहन कार्यक्रम में अपने घरों में सम्मिलित होती हैं और वह उसी तरह से पूजा अपने घरों में करती जैसे पुरुष बाहर करके आए हैं क्या इसे हम महिलाओं की स्वतंत्रता के संदर्भ में देख सकते क्या इसे परतंत्रता कहा जाएगा या इसे महिला की सुरक्षा कहा जाएगा जहां पर गरिमा पूर्ण ढंग से महिला को समानता का अधिकार भी दिया जा रहा है और महिला सुरक्षित रहते हुए अपने धर्म को उल्लास के साथ मना रही है इसी स्वतंत्रता की परिभाषा को आज समझने की आवश्यकता है शायद यही महिला दिवस होगा (डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन लेखक पिछले 20 वर्षों से मानवाधिकार विषयों पर जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं)
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