Sunday, February 5, 2023

औरत और चिड़िया

 एक चिडिया उडी आकाश में ,

एक चिडिया उडी प्रकाश में ,

साँझ का मतलब जानती है ,

अंधेरो को भी पहचानती है ,

नन्हे पर लेकर ही जीती है ,

अजब सा साहस वो देती है ,

वो निकलना कब छोडती है  ,

अपने रास्ते कब मोडती है ,

तुम चिडिया से कम नही ,

क्या तुम में कोई दम नही,

बदल डालो अपना आकाश ,

बनो लो अपने नए प्रकाश ,

साँझ से पहले संभल जाओ,

पूरब की लाली फिर बन जाओ,

ना करो भरोसा किसी पर इतना,

दूर रहो उनसे भ्रष्टाचार से जितना ,

चिडिया बाज़ से निकल जाती है ,

परगंगा को मैला निगल जाती है ,

रात को आओ फिर से समझ ले ,

मुट्ठी में आलोक पूरब से ले ले ।


आलोक चांटिया

No comments:

Post a Comment